Book Title: Anusandhan 2007 04 SrNo 39
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 14
________________ अप्रिल-२००७ षड्भाषामय श्रीऋषभप्रभुस्तवः सं. मुनि कल्याणकीर्तिविजय १-४ आर्या आर्या आर्या श्रीऋषभप्रभुस्तव ए श्रीऋषभदेवभगवाननी, ४० श्लोकोमा पथरायेली एक सुन्दर स्तुतिमय रचना छे. तेमां संस्कृत, समसंस्कृत तथा प्राकृतनी छ भाषाओ, एम कुल आठ भाषाओमां विविध अलङ्कारो तथा व्याकरणना प्रयोगो द्वारा श्रीऋषभदेव भगवाननी अत्यन्त भाववाही स्तुति करवामां आवी छे. भाषाओमां स्तुतिओनो क्रम आ प्रमाणे छे : भाषा स्तुतिना श्लोको संस्कृत प्राकृत ५-८ मागधी ९-१२ आर्या पैशाचिकी १३-१६ आर्या . चूलिका पैशाचिकी १७-२० शौरसेनी २१-२४ आर्या समसंस्कृत-प्राकृत २५-२८ अपभ्रंश २९-३७ दोधक ३८मा श्लोकमां तो कविए पोतानी सघळी प्रतिभा कामे लगाडीने कमाल करी दीधी छे. आ श्लोक आठेय भाषामां रच्यो छे. तेमां दरेक भाषामां ते ते चरणना अर्थो अलग अलग थाय छे. प्रथम चरण संस्कृत, समसंस्कृत-प्राकृत, प्राकृत छन्दद्वितीय चरण पैशाचिकी, चूलिकापैशाचिकी शार्दूलविक्रीडित तृतीय चरण मागधी, शौरसेनी चतुर्थ चरण अपभ्रंश ३९ मा श्लोकमां संस्कृतभाषामां चक्रबन्ध बनाव्यो छे, जेमां कविए पोतानुं नाम पण गर्भित रीते मूकी दीधुं छे. अहीं पण छन्द शार्दूलविक्रीडित छे. ४० मा श्लोकमां कविए आ स्तोत्रनी महत्ता बतावी उपसंहार कर्यो आर्या छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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