Book Title: Anusandhan 2007 04 SrNo 39
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 16
________________ अप्रिल २००७ अवचूर्णि : आ स्तवनां विषम पदोनो सरळ अर्थ (संस्कृत भाषामा) अवचूर्णिरूपे आपवामां आव्यो छे, जेना लीधे श्लोकोनो पदच्छेद करवामां तथा अर्थ समजवामां घणी सरळता रहे छे. साथे साथे केटलेक ठेकाणे व्याकरणनां सूत्रो पण ते ते प्रयोगोने अनुसारे आपवामां आव्या छे. जो के, केटलाक विषम स्थानो अवचूर्णिकारे नजरअंदाज पण कर्या छे, जेना कारणे अमुक स्थानो सन्दिग्ध रह्यां छे. अवचूर्णिकार : आ अवचूर्णिना कर्ता तपगच्छीय मुनि मतिविजय छे एवं तेना छेडे आपेल पुष्पिकाथी जणाय छे. प्रतिपरिचय: आ प्रति कया ज्ञानभण्डारनी छे ते जाणी शकायुं नथी. प्रति पंचपाठी छे जेमां वच्चे स्तव तथा चारे बाजुए अवचूर्णि छे. आ प्रतिमां आ स्तव सिवायनी बीजी पण त्रण कृतिओ छे : १. श्रीजिनप्रभसूरिरचित श्रीनेमिनाथ क्रियागुप्त स्तव, २. पद्मनन्दिमुनि - रचित यमकबद्ध श्रीपार्श्वजिनस्तव, तथा ३. श्री सोमसुन्दर ( सूरि) रचित यमकबद्ध श्रीपार्श्वजिनस्तव. आमांनां बन्ने पार्श्वजिनस्तव अवचूर्णि / वृत्ति सहित छे. प्रतिमां अक्षरो स्पष्ट - स्वच्छ छे. लेखनमां अशुद्धिओ छे. पद्मनन्दिमुनिरचित पार्श्वजिनस्तवनी अवचूरिमां तेनो रचना संवत् १७७९ आप्यो छे उपरथी आ प्रतिनो लेखनकाल १८मो सैको अनुमानी शकाय छे. ॥ ६० ॥ 11 ܀ श्रीऋषभप्रभुस्तवः षड्भाषामयः निरवधिरुचिरंज्ञानं दोषत्रेयविजयिनं सतां ध्येयम् । जगदवॅबोधनिबन्धन - मादिजिनेन्द्रं नेवीमि मुदा ॥१॥ Jain Education International अवचूर्णि: १. ज्ञानातिशयः । २. रागद्वेषमोहरूपम्, अपायापगमातिशयः । ३. पूजातिशय: । ४. वचनातिशयः । ५ णुक् स्तुतौ णुवु-रु-स्तुभ्य ईत्, प्र. ई ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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