Book Title: Anusandhan 2003 01 SrNo 22
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 23
________________ January-2003 17 खीर गोखीर जेसें, विक्रम बलवीर जेसें, पार्थि रनवीर जेसें, ऐर गजराज हैं । युं सब राज राजबीच, नरन के प्रताप ज्यौं, दीप कविराज आज मांनराज महाराज हें ॥११॥ -x - अब समुद्रबंध के ३६ दोहरें लिखे हैं । पित समुद्रबंध वांचणेकी रीत या हें के आगों से आडी ओल ३६ वांचणी तामें महाराजको किर्तिबरनन बंचीजे ।। पिछ्य १४ रत्न बंचीजे सो निचे लिख्या प्रमाणे ॥ विभाग बीजो (जमणी तरफनां चित्रोनी नीचेना चोकठानुं लखाण) अथ श्री मांनमहीपालकी खाग को बरनन ॥ कवित ॥ पावक प्रलयकाल व्याल जीह ज्वाल कीधौ, बालधी बिसाल लंक जालकी सी जानी हें । दारुन सुमन धनु दहन नयन कीधौ, रक्त बीज ग्रसनी की लसनी लसानी हें । जमकी सी दाढ परसैन पें असाडबीज, पातनसी कीधौ वज्रघात सी वखानी हें । गुमान के सपूत महाराज मान तेरी खाग कीधौ, अरी जालनकुं कालकी निसानी हैं ॥१॥ इति खाग वरनन ॥ भद्रं भूयात् ।। ___ - x १. खडग । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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