Book Title: Anusandhan 2003 01 SrNo 22
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 56
________________ 50 6m 5 . अनुसंधान-२२ अगर सुगंध महकै घणो रे सोहै शिखरगिरि सैल ती०३ खालनाल. खोअल वडी रे, विकट मनोहर वेड ती उत्तंग मगन सेंजडी रे परबत पद रहेड ती० ४ नवपल्लव तरु शोभता रे जंबू जंभीरी सहकार ती० तोता चातक मधुर स्वरै रे कोकिल करै टहुकार ती० संघ सज्जन सहु उता. रे. मधुवन केरे मझार ती० । पूरै मनोरथ मन तणा रे वरत्या जय जयकार ती० . सयण सनेही निज घरे रे ... सुख सहित भरपुर ती० संघ सहू घर आवियो रे . करम कीया चकचूर ती० ७ ढाल ७ || . .. इण कलिकालें परचा पूरण संकट चूरण मारी जी ... श्रीसमेतशिखरगिर दिनकर तेजै शिव अधिकारी जी १ इंद चंद दिणंद सबे मिल सुरकुमार हुऽ अमारी जी(?) । सुर नर मुनिवर संघ चतुर्विध भवियणनें हितकारी जी २ ग्रहगण मांहै मोटो सूरज तिम ए तीरथ भाष्यो जी मंत्र जंत्र घणाइं जगमें . वडो नवकार ज दाष्यो जी ३ सकल सुगिरिवर अधिपति मेरु धीरज तेणें राख्यो जी :समय परंपराने अनुसारे अनुभव वृद्धि रस चारव्यो जी ४ रमणअ (मणुअ?) तिरय सुरगति अधिकी, सहुथी मुक्ति वखांणी जी मानसरोवर उत्तम पंखी अवर ते समधा(?) जाणीजी ५ ए तीरथ जिण नहि वंद्या पूज्या ते दुर्भाग्य जन प्राणी जी पूजो (जे) वंदै नर भव भावै विनय अधिक चित्त आणीजी ६ जिनमत सूत्र सिद्धांत चरित्रै . जिन पंचांगी माहै जांण्योजी जूजूवा ते दिन श्रीजिन सीधा मुनि संग संबंध वखांण्यो जी ७ कुमती ते पिण सुमती वरज्यो शुद्ध श्रद्धा चित धरज्यो जी देव गुरु धर्म तत्त्वें लहीज्यो श्रद्धा ते अनुसरज्यो जी wa Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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