Book Title: Anusandhan 2003 01 SrNo 22
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 62
________________ ग्रन्थावलोकन इतिहासना अज्ञात प्रदेशमां स्वैरविहार 'निर्ग्रन्थ ऐतिहासिक लेख समुच्चय' मुनि भुवनचंद्र इतिहास आलेखननी आधुनिक पद्धति भले अंग्रेज / जर्मन विद्वानो थकी आविष्कार पामी होय, पण हवे ते विश्वभरमां मान्य पद्धति बनी चूकी छे. आजनो इतिहासकार मात्र चरित्रो, कथाग्रंथो के रासोना आधारे इतिहास लखतो नथी. प्रमाणभूत इतिहास माटे आंतरिक अने बाह्य प्रमाणोनी आवश्यकता आजे सुस्थापित थई चूकी छे; तुलना अने पृथक्करण-विश्लेषण पण जरूरी छे. प्रमाणोनो स्रोत मात्र साहित्यमां-लिखित रूपमां ज सीमित नथी होतो. लिखित उपरांत शिलालेखो, ताम्रपत्रो, प्रतिमालेखो, सिक्काओ, पुरातात्त्विक निष्कर्षों, वैज्ञानिक परीक्षणो- आ बधुं पण इतिहासकारे तपासवू पडे. लिखित सामग्रीमां पण केटलुं वैविध्य होय छे ! मात्र इतिहासग्रंथो ज नहि, हस्तप्रतोनी प्रशस्तिओ, पुष्पिकाओ, प्रवासवर्णनो, लोकगीतो, दस्तावेजो, दंतकथाओ वगेरेमां पण इतिहासना अंशो विखरायेला पड्या होय छे. आवा विभिन्न स्रोतोमां इतिहासकारे नजर दोडाववी पडे छे, भूगोळ-खगोळ के तत्त्वज्ञान-फिलोसोफी जेवा विषयोनो पण परिचय इतिहासकारे राखवो पडे. क्यारेक सैद्धांतिक उल्लेखोना आधारे कोई व्यक्ति के घटनानो समयनिर्णय थयो होय एवा दाखला छे. इतिहासकारनी पासे भाषा, व्याकरण अने साहित्यनी विविध शाखाओ- पण उच्च कक्षानुं ज्ञान होवु जोईए. आ बधाथी उपर, प्रबळ स्मरणशक्ति तथा फळद्रूप कल्पनाशक्ति पण होवा जोईए. दरेक क्षेत्रमा आजे तो विश्वभरमां संशोधको शोधकार्य करता ज रहेता होय छे. इतिहासविद जो आ बधाथी माहितगार न होय तो तेनुं शोधकार्य नबळु ज रही जाय. प्रमाणभूत इतिहासना संशोधन माटे आवी ने आटली सज्जता अपेक्षित होय त्यारे उच्च कक्षाना इतिहास संशोधको के लेखको ओछा होय ए देखीतुं छे. ___ जैन इतिहासनी वात करीए तो आधुनिक पद्धतिए इतिहासमुं आलेखन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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