Book Title: Anusandhan 2003 01 SrNo 22
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
58
अनुसंधान-२२ नमूना तरीके काम आवी शके. 'जीर्णदुर्ग - जूनागढ विशे' (खंड-१, पृ. १९०), 'स्वामी समन्तभद्रनो समय' (खंड-१, पृ. २८), वादी कवि बप्पभट्टिसूरि' (खंड-१, पृ. ५९), 'सिद्धराजकारित जिनमन्दिरो' (खंड-२, पृ. १२२) आदि लेखो इतिहासना विद्यार्थी माटे पाठ्यपुस्तकनी गरज सारे एवा सुबद्ध, समृद्ध लेखो छे. शक्य एटली बधी ज विगतो एकत्र करवी, तेना पर तुलनात्मक विचार चलाववो, नवां प्रमाणो द्वारा तेनुं खंडन के मंडन करवू, शक्य विरोधो स्वयं प्रस्तुत करी तेनुं निराकरण पण पूरुं पाडवू -- आ बधुं विस्तृत अने विगतप्रचुर शैलीओ थयेलुं आ लेखोमां जोवा मळशे.
'नामूलं लिख्यते किञ्चित्' - 'आधार विनानुं कंई पण न लखवू' - ए शास्त्रीय नियमने श्री ढांकी कठोरपणे अनुसरे छे अने आधारो -- प्रमाणो शोधवानो जे श्रम करे छे ते विरल कक्षानो छे. आमां एमनी बहश्रुतता, प्रखर स्मृति शक्ति अने विषय परत्वेनी निष्ठा जणाई आवे छे. लेखो तो माहिती सभर छे ज, लेखांते जोडेलां टिप्पणो पण विस्तृत छे - क्यांक क्यांक तो ५.-१० पानां सुधी लंबाय छे. मीनळदेवी, खरुं नाम मैळलदेवी हतुं ए विधानना टेकामां छेक कर्णाटकना अभिलेखोनो आधार लेखक रजू करे छे (खंड-१, पृ. १३५); 'वालीनाह' व्यन्तरना मूळ नाम विशे दन्तकथा, साहित्य, लोकरूढि, शिल्पशास्त्र जेवा विभिन्न स्रोतोमांथी आधारभूत सामग्री आपे छे. लेखकनी शोध केटली व्यापक छे तेनां आवां दृष्टान्तो ग्रन्थमा ठेर ठेर जोवा मळे छे.
इतिहासकारो पण मानवो होय छे, मानवसहज प्रमाद, पूर्वग्रह के असूयाना प्रभाव हेठळ क्यारेक लेखकना हाथे इतिहासने अन्याय थई जतो होय छे. पोताना समकालीनोनी के पुरोगामीओनी आवी क्षतिओ शोधवानीसुधारवानी कडवी फरज पण इतिहास-लेखके क्यारेक बजाववानी थाय छे. श्री ढांकीने पण आवं कर पड्युं छे. 'सिद्धराजकारित जिनमन्दिरो' (खंड२, पृ.१२२) लेखमां आq थयुं छे. पुरोगामी विद्वाननां विधानोनो सचोट प्रतिकार करवामां लेखके जरा पण कसर छोडी नथी, ते साथे ए विद्वानना प्रदान अने अन्य विशेषताओनो मानभेर उल्लेख करवा- लेखक चूकता नथी. 'स्वामी समन्तभद्रनो समय' (खंड-१, पृ. २८) लेखमा पूर्वग्रहग्रस्त विद्वानोना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78