Book Title: Anusandhan 2003 01 SrNo 22
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 54
________________ अनुसंधान-२२ धर्मनाथ जिन शासन देव दत्तवरकूट तिण काजै सेव ऋषी अष्टसै संघातें मुक्तिपद लह्यो तिण कारण निरबाणभूमी कह्यो १२ शांतिनाथ नवसै मुनि संग कूट प्रभासै लह्यो पद रंग तिण कारण ए तीरथ करो स्वर्गपुरीको सै दीवडो कुंथुनाथ एह गिरिवर सीध ज्ञानधरकूटै अणसण लीध सहस साधु संगें शिव गया तेहतणा जग नाम ज थया मुक्ति लहै श्रीअर सुखकार सहस साधु संगे परिवार नाटक नाम कूट ते ठाम वंदं ए गिरि उत्तम धाम परमदयानिधि मल्लीनाथ साधु पांचसै सीधा साथ जाणी ए गिरि उत्तम ठांण सबल कूट भूमी निरबाण करुणानिधि मुनिसुव्रत ईस दस शत साथै साधु जगीस निर्जरकूट कियो विश्राम इण गिरि पाम्या अविचल धाम १७ प्रणमुं नमिजिन चित्त उमंग सहस एक मुनिवर ले संग कूट मित्रधर सोहै भलो ते निरबाण त्रिभुवन तिलो संगें श्रीसांवलिया पास तेतीस केवली कीधा उल्लास स्वर्णभद्रकूटै तज देह तिणथी मोटो गिरिवर एह अविचल पद पर्वत अवतार दुर्गति तिमिरहरण दिनकार नित नित प्रणमुं हुं तिहुंकाल फल्या मनोरथ मंगलमाल २० श्रावक श्राविका साधु निग्रंथ समेतशिखरगिरि मुक्ति सुपंथ ध्यावै पावै अजपाजाप दूर करै सहु संचित पाप २१ ___ ढाल ५ नमो रे श्री० ए देशी ॥ सोहै गुणमणिलाल शिखरगिरि प्रवर तीरथ शुचि एह रे एहवो सुथानक जगमै न कोई भवारण मुक्ति एह रे समे०१ समेतशिखरगिरि भावै वंदो वंदत नंदो चिरकाल रे भेट्या मेटै फेरन भवका पूज्यां पाप पखालै रे समे०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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