Book Title: Anusandhan 2003 01 SrNo 22
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 48
________________ अनुसंधान - २२ तीर्थनो नवो उद्धार कराव्यानी पण नोंध करेल छे. आ सुकालचंद एटले जगतशेठ खुशालचंद एम नीचेना सन्दर्भ थकी समजाय छे : 42 "आ समये वि.सं. १८२५ ना महा सुदि ५ना रोज जगतशेठ खुशालचंद वगेरेए समेतशिखर महातीर्थ उपर तथा तळेटीमां मधुवनमां नानां मोटा जिनमन्दिरो बनावी तेनी भ. विजयधर्मसूरिना हाथे प्रतिष्ठा करावी हती. (मो.बा.फ.नं. ३३ तथा समेतशिखररास ) " ( - जैन परंपरानो इतिहास - ३, पृ. ११०, त्रिपुटी महाराज अमदावाद - ई. १९६४) ढाल ६मां तीर्थभक्ति-वर्णन, अने ७मां प्रशस्तिवर्णनमां संवत् १८४७मां अषाढ वदि १०ना विशालानगरीमां वा. ऋद्धिविजय शिष्य भावविजय शिष्य पं. मानविजय शिष्य गुलाबविजये आ रास रच्यानो सन्दर्भ छे. आ रास अंगे (मध्यकालीन)) 'गुजराती साहित्य कोश' मां 'गुलाबविजय' ना अधिकरणमां नोंध निर्देश मळे छे, पण ते मुद्रित होवानुं सूचन नथी, तेथी अहीं तेनुं प्रकाशन थाय छे. क्यांय मुद्रित होवानुं कोईना ध्यानमां होय / आवे तो अवश्य सूचित करे. आ रासनी प्रति ७ पत्रोनी छे. प्रति संभवतः १९मी सदीमां लखायेली जणाय छे. मूळ कृति गुजराती भाषानी होय, तेमां मारवाडी जबाननी छांट तो भळी छे ज; ते उपरांत बंगाली बोलीनी छांट पण जोवा मळे छे : पूरब, निरबाण इत्यादि पदो द्वारा. बंगाल- प्रदेशमां आ प्रति लखवामां आवी होय तो बनवाजोग छे. X श्रीगुरवे नमोस्तु ॥ अथ श्री शिकरजीरो राश लिखि ॥ दूहा : सांवलिया श्रीपासजी पणमवि व (च) रण जिणंद । थुणुं रास सुरतरुसमो सीखर समेत गिरिंद ||१|| महीयल मै तीरथ घणा गिणतां न लहूं पार 1 ऊर्द्ध अधो मध्यलोक मै समेतसिखरगिरि सार ॥२॥ ऋद्धि वृद्धि सुखसंपदा दायक दीठा होय । अष्ट सिद्धि नव निधि जप्यां इण सम अवर न होय ॥३॥ Jain Education International --- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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