Book Title: Anusandhan 2003 01 SrNo 22
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 47
________________ श्रीगुलाबविजय-विरचित श्रीसमेतशिखर गिरि रास . सं. विजयशीलचन्द्रसूरि वीस तीर्थंकरोना निर्वाण कल्याणक थकी तथा असंख्य साधकोना सिद्धिगमन थकी पावन बनेल पर्वत-तीर्थ श्रीसमेतशिखरगिरि ए जैन संघरों अत्यंत पवित्र, मान्य अने आराध्य तीर्थ छे. आ तीर्थनी गुणगाथा वर्णवतो तेमज अहीं थयेल शामळिया पार्श्वनाथनी प्रतिष्ठाना ऐतिहासिक बनावनी स्मृति वर्णवतो एक नानकडो रास, तपगच्छीय मुनि गुलाबविजयजीए वि.सं. १८४७मां रचेलो, ते अत्यारे मारी पासे उपलब्ध एक प्रतिने आधारे संपादित करीने अत्रे रजू करवामां आवे छे. रासनी छ ढाल छे. प्रथम ढालमां पालगंज राज्य तथा तेना राजानो उल्लेख (कडी ९-१०) मळे छे. ते पछीनी कडीमां मधुवन, पहिली घाटी, सीतानाल ए भौगोलिक नामो आवे छे. १६मी कडीमां सहस्रफणा पारसनाथनो उल्लेख छे, अने १७मी कडीमां सजल कुंड-जल भरेल कुंड अने तेनी पासे वीस जिननां पगल्यां-पगलांनो ऐतिहासिक उल्लेख थयो छे. भोमियाजीनो क्यांय निर्देश नथी: शासनदेवी-तीर्थनी अधिष्ठायक - एम (कडी १२) उल्लेख छे. संभवतः भोमियाजीना प्राकट्य पूर्वेनी आ रचना छे. बीजी ढालमां आ तीर्थे मोक्ष पामनारा २० तीर्थंकरो तथा तेमनी नगरीनां नामो वर्णवेल छे, तो त्रीजी ढालमां ते पैकी कया तीर्थंकर कया दिवसे निर्वाण पाम्या तेनुं वर्णन छे. ढाल ४मां कया जिन साथे केटला साधु सिद्ध थया तेनी विगत आपवा साथे तेमना निर्वाणस्थलरूप ढूंक-कूटटेकरीनां नामो पण आपेल छे. ____पांचमी ढालमां, वि.सं. १८२५मां, तपगच्छपति विजयधर्मसूरिना राज्ये ओसवालवंशीय श्रावक शाह सुकालचंदे, अहीं देरासर कराव्युं अने तेमां माघ शुक्ल पक्षे शामळिया पार्श्वनाथ प्रभुनी प्रतिष्ठा करावी - ते ऐतिहासिक घटना- सुस्पष्ट बयान आपेल छे. साथे ज, ते श्रावके वीसे ढूंक एटले के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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