Book Title: Anusandhan 2003 01 SrNo 22
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 39
________________ January-2003 देतां देतां ३ गाथा बोलीने ते विधि साचवी लेवानुं सूचन पण करेल छे. ४. आ पछी देरासर पुंजवानुं एटले के झाडु, पुंजणी वगेरेथी साफ करवानुं छे, अने साथे साथे बीजां देरासरो (होय तो ) नी चिन्ता ( तेनी पूजानो प्रबंध करवानी चिन्ता) करवानी सूचना छे. आ पछी ज सुखड - केसर घसवानुं छे, ते पण मुखकोश बांधीने ज. तेमांये पूजानुं तथा तिलक माटेनुं अलग करी मूकवानुं छे. पछी बधुं लईने गभाराना दरवाजे जाय, त्यां आठपडो मुखकोश बांधीने ज अंदर जाय ते सूचन छे. ५. ६. अंगपूजाना आरंभे निर्माल्य वासी फूल, केसर वगेरे उतारवानी वात छे. खोखुं उतारवानी वात नथी. पुराणां खोखां आज लगी क्यांय मळ्यां पण नथी. २००-४०० वर्ष जूनी आंगी मळे छे तेमां पण पाखर, हंस, मुगट, कुंडल, बाजुबंध, हार, श्रीफल आटलुं ज, वधुमां वधु, मळ्युं छे; आखुं के खंडशः धातुनुं खोखुं नहिज. पछी पखालनी वात आवे छे, एमां दूधनी वात आवती नथी. सुगन्धित पाणी अने तेमां सुखड - केसर-फूल त्रण वानांनुं मिश्रण करवानी अने ते थकी प्रक्षाल करवानी सूचना छे. आमां दूध क्यांय नथी आवतुं. आजे तो दूधनी ज प्रधानता होय छे. दूध न होय तो प्रक्षाल अधूरो- विधिहीन मनाय छे. फलतः वासी, कोथळी के फ्रीजनां दूधनो पण छोछ रह्यो नथी, ते नितान्त आशातना गणाय तेम छे. वळी, आ विधिमां जीवोनी जयणानी वात वारेवारे करी छे; ज्यारे दूधना के दूधमिश्रित पखालथी थती चीकाश, फूग, जीवोत्पत्ति, तेनाथी आकर्षाईने आवती गरोळी, उंदर, वांदा वगेरेनो उपद्रव, ते बधांनी पूजारी द्वारा थती हिंसा आ बधांनो विवेक आजना पूजाप्रेरको तथा पूजा- कारको पासे जोवा मळतो नथी ज. ७. अंगलूहणांनी वात विगते समझवायोग्य छे. कुल ४ अंगलूहणां राखवा. बे आजे वापर्यां, ते काले न वापरवां; काले बीजां बे वापरवां. एकेक अंगलूहणुं साडा त्रण गजना मापनुं लेवुं. तेने केसर सुखडनो पास आपी पीळां करवानां छे. वळी तेने सुगंधभर्या स्थाने राखवानी सूचना छे. ८. पखालनुं पाणी तथा निर्माल्यभूत बीजा पदार्थ भेगा न राखतां जुदा Jain Education International * 33 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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