Book Title: Anusandhan 2003 01 SrNo 22
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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. अनुसंधान-२२
पण ते प्रचलित होवो जोईए (आजे तो छोडी देवायो छे) तेम आ विधिगत विधान वांचवाथी जणाई आवे छे.
प्रांते, आ विधिनी प्रति मारा पर मोकलती वखते लखेलो पत्रमा मुनि श्रीभुवनचन्द्रजीए लखेल केटलाक मुद्दा नोंधुं तो -
"अष्टप्रकारीनो क्रम, नव अंग, अक्षत वगेरे अंगेनी ते वखतनी .. प्रणालिका कंईक जुदी ज छे. पं. कल्याणविजयजीनी 'जिनपूजापद्धति'नां केटलांक विधानोने समर्थन मळे तेवू आमां घणुं छे.... प्रणालिका अने परंपराने शाश्वत जेवी समजी बेसनाराओना हाथमां आ मूकवा जेवं छे.... अत्यारे जेम छे तेम पहेला पण हतुं- अर्थात् हालनी विधि 'सनातन' छे एवी मान्यता बरोबर नथी."
लेखनी भाषा मारुगुर्जर एटले के राजस्थानी (मारवाडी) मिश्रित गुजराती लागे छे. केटलाक शब्दोनो संग्रह छेवाडे आपेल छे.
पूजानी विधि लिखिइ छइ । पूरवदिसि बइसी अंघोलि कीजि । भूमिका पुंजीनइ जीव काजि । पडे धोतीउं पहिरीइं । पगे भई अणफरत उत्तरदिसि साम्ह रही धोतीउं पहिरई अनि उत्तरासंग करि । ते धोतीआ श्वेत निर्मल चोखां । किरिडिआं नही । फाटा नही । साध्या नही । आंतरी सहित । पुरुष नइ २, स्त्री नइ ३ धोतीआं ॥
पिहिलूं बारणि 'निसिही' कहइ । तेणी निसिहीइ मन वचन कायाई करी घरनुं व्यापार निषेधाइं । मांहि पइसतां अभिगमन चारि करीइं - जिन पूजा व्यतिरेक सचित्त छांडीइं १, अचित्त वस्तु आभरणादिक राखीइं २, मननुं एकांतपणु करीइं ३, एकसाडिउ उत्तरासंग करीइं ४ । पूजानु उपस्कर सर्व लेई जईइ । पहिलं जिमणउ पग मांहि मुंकीइ । जगन्नाथनइ जिमणइ पासई रहीइं। मूलनायक- मूख देखी माथि हाथ चडावी नमता थिका 'नमो जिणाणं' कहीइ वार ३ । ए पांचमु अभिगमन साचवीइं ॥
पछंइ वाजिब वाजतइ परिवार लेई सृष्टिं प्रदक्षिणा ३ दीजइ । जगन्नाथना जिमणि पासाथी डावि पासि ऊतरीइ । तिहां "जयजंतु कप्पपायव०" ए त्रिणि गाथा भणीइं । नीचु जोतां मनमाहि एहवं चिंतवीइं 'ज्ञान-दर्शन
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