Book Title: Anusandhan 2003 01 SrNo 22
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 29
________________ January-2003 23 राजा होंके कछुक गूढार्थ पढ्या चाहीइं, या राजनीती हैं | ता गुढ दोहरो हितचिंतन ।। दधीसुत के नीचे बसें० ।। इति षष्टम रत्न ॥६॥ ए धनुष बंध ॥६॥ राजा होंके दया सहित बेद बांनी सुनों ॥ ताकुं दोहरो हितसिक्षा । धाता बांनी चोमुखी० ॥ इति सप्तम रत्न ||७|| ए पहाड बंध ||७|| राजा होंके दिवान परधान राखें सो राजसुभचिंतक रखें । अरु राजद्रोहिकुं दूर रखें-करें, या राजनीती हें ॥ ताकुं सिद्धांत की गाथा हितचिंतन || नासइ जुएण धणं० ।। इति अष्टम रत्न ॥८॥ ए पहाड बंध । ए ८ राजनीती ||८| भूपति मानि मर्दन० ॥नवरत्न |हा। ए खंडो कलीबंध ।।९।। अविचल तपतेज० ॥ इति दसम रत्न ॥१०॥ ए खंडो कलिबंध ।।१०।। श्री मांनराज गंगाकुल चिरजय ।। इति एकादसम रत्न ॥११॥ श्रीपुष्करणी बंध ॥११॥ पट प्रधान मानसंग सुदिगविजयोस्तु० ॥ इति द्वादशम रत्न ॥१२॥ ए हेर बंध ॥१२॥ मानराज सम सेरबहादर० ॥ इति त्रयोदशम रत्न ॥१३॥ ए पुष्करणी बंध ॥१३॥ — मानराज कुंभ घट मम मनोवांछितदायको भव० || ए छडीबंध इति चतुर्दशम रत्न ॥१४॥ या एक समुद्रबंध माहे से १४ बंध निकस्ये ॥ १४ फूलकी सेरको १ चोसर हारबंध ॥१॥ १६।१६। फूलकी एक सेरके दो दूसेर हारबंध ॥३॥ . १॥ वज्र मुरज बंध ॥४॥ दो धनुष बंध ॥६॥ दो पहाड बंध ||८|| दो खंडो कलिबंध ॥१०॥ दो पुष्करणी बंध ॥१२॥ एक लेहेर बंध ॥१३॥ एक छडीबंध ॥१४॥ इसे १४ रत्न समुद्रबंध मांहेसे वंचीजे हे सो समझके वांचणो ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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