Book Title: Anusandhan 2003 01 SrNo 22
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 32
________________ 26 चरितं रघुनाथस्य शतकोटीप्रस्तरं । एकैकमक्षरं पुंसां महापातिकनाशनं ||२|| दधि चन्दन तम्बोलं कुच कर्पास भेषजं । इक्षुखण्डे तिले मूर्खे मर्दनं गुणवर्द्धनं ॥३॥ प्रणम्य परमात्मानं बालधीवृद्धिसिद्धये । सारस्वतिमृजुं कुर्वे प्रक्रियां नातिविस्तराम् ||४|| दधीसुत के निचे बसें मोतीसुत्तके बीच | सो मागत व्रजनाथ का दिओ सांम दृग्मी मेरी भव बाधा हरो, राधानागर सोय । या तनकी ज्यांहिं परे स्यांम हरित द्युति होय ॥५॥ धाता बानी चोमुखी दीए वेद समजाय । देखो एह बानी विना सब पानीमें जाय ||७|| दूसर हारबन्ध ॥२॥ Jain Education International अनुसंधान-२२ दूसर हारबन्ध ||३|| For Private & Personal Use Only वज्रमुरजबन्ध ||४|| ||६|| धनुषबन्ध ॥५॥ धनुषबन्ध ||६|| नासइ जूएण घणं नासइ रज्जं कुमंतमंतीहि । अइरूवेन (णं) महिला न (ना) संति गुणेन सव्वेण ॥८॥ पहाडबन्ध ॥७॥ भूपति मानि मर्दन० || खंडौ कलिबन्ध || अविचल तप तेजे० ॥ खंडौ कलिबन्ध || मानराज गंगाकुल चिरजय० ॥ पुष्करणी बन्ध || पटप्रधान मानसंग सुदिगविजयोस्तु० || लहेरबन्ध || मानराज समसेर बाहादुर० || पुष्करणी बन्ध ॥ मानराज कुंभ घट मम मनोवांच्छित दायको भव० ॥ छडीबन्ध | पहाडबन्ध ॥८॥ www.jainelibrary.org

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