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चरितं रघुनाथस्य शतकोटीप्रस्तरं । एकैकमक्षरं पुंसां महापातिकनाशनं ||२||
दधि चन्दन तम्बोलं कुच कर्पास भेषजं । इक्षुखण्डे तिले मूर्खे मर्दनं गुणवर्द्धनं ॥३॥
प्रणम्य परमात्मानं बालधीवृद्धिसिद्धये । सारस्वतिमृजुं कुर्वे प्रक्रियां नातिविस्तराम् ||४||
दधीसुत के निचे बसें मोतीसुत्तके बीच | सो मागत व्रजनाथ का दिओ सांम दृग्मी
मेरी भव बाधा हरो, राधानागर सोय । या तनकी ज्यांहिं परे स्यांम हरित द्युति होय ॥५॥
धाता बानी चोमुखी दीए वेद समजाय । देखो एह बानी विना सब पानीमें जाय ||७||
दूसर हारबन्ध ॥२॥
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अनुसंधान-२२
दूसर हारबन्ध ||३||
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वज्रमुरजबन्ध ||४||
||६||
धनुषबन्ध ॥५॥
धनुषबन्ध ||६||
नासइ जूएण घणं नासइ रज्जं कुमंतमंतीहि । अइरूवेन (णं) महिला न (ना) संति गुणेन सव्वेण ॥८॥
पहाडबन्ध ॥७॥
भूपति मानि मर्दन० || खंडौ कलिबन्ध || अविचल तप तेजे० ॥ खंडौ कलिबन्ध || मानराज गंगाकुल चिरजय० ॥ पुष्करणी बन्ध || पटप्रधान मानसंग सुदिगविजयोस्तु० || लहेरबन्ध || मानराज समसेर बाहादुर० || पुष्करणी बन्ध ॥ मानराज कुंभ घट मम मनोवांच्छित दायको भव० ॥ छडीबन्ध |
पहाडबन्ध ॥८॥
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