Book Title: Anusandhan 2003 01 SrNo 22
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 31
________________ January-2003 अथ तोटक छंदे द्वादस अक्षर-सोल मात्रा सहित संस्कृत भाषायां ॥ नकमोदपुरारपमेसगिरा, दिरदाईत्रईसुतसोरनजा । चतुराक्षर संधिरधोर्धगता, तवशत्रुगणा ( णं) न्नृप हंतु सदा ||२१|| दीर्घायु भव ३ || ( भव भव भव ) ॥ X त्रपुराई सुरपत च तु सोमेसर नागराजा त व ――――_____ इति श्रीमत्तपागण । श्रीविजयानंदसूरीगच्छे । राज श्री गायकवाड दत्त - कविराज बिरद । जत्ती पं. दीपविजय कविराजेन विरचिताया । श्री राठोड कुल गगन भान । महाराजाधिराज । महाराज | श्री मानसिंह महीपाल किर्तित गुन समुद्रबंध आसिरवचन श्रेयः ॥ तोटकछंद देवरछ्या न क मोद पु रा र प मे श गि रा दिनकर दामोदर ईसु त सो र न जा दिर दा र त्र रा क्ष र संधि र धोर्ध ग ता शत्रु ग स संवत १८७७ वर्षे । शाके १७४२ प्रवर्तमाने । श्री आसोज सुदि विजयादशम्यां । लिखितं । स्वहस्ते । पं. दीपविजय कविराजे ॥ X णा नृ - Jain Education International विभाग छठ्ठो समुद्रबन्ध- कोठा- अन्तर्गत चतुर्दश बन्ध यां चिंतयामि सततं महा ( यि ) सा विरक्ता, पहं तु साप्यन्यमिच्छसि (ति) जनं स जनोअ ( S) न्य) सक्त: । अस्मत्कृते च परितुष्यति काचिदन्या, धिग् तां च तं च मदनं च इमां च मां च ॥१॥ 25 For Private & Personal Use Only दा एकसरो हारबन्ध ||१|| www.jainelibrary.org

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