Book Title: Anusandhan 2003 01 SrNo 22
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 30
________________ 242 अथ मोतीदांम छंद ॥ तपें जग सूरज तेज प्रमांन, नमे जस आन बडें महिरान ! बडी जस कीरत उज्जल लाज, कहावत सांच गरीब निवाज || १|| भयो जगपालन तुं नरनाह, जयो अनपूरन पूर अगाह । झरें मदपूर बडे गजराज, गजें मनु साम घटा घन गाज ||२|| घटाघट अश्वतणी खुर ताल, झगामग बीज जिसी करवाल । अरी सब भाज गए दह वट्ट, भयो जय मंगलके घघट्ट ||३|| सदानित जीत घुरंत निसांन, हुओ बखते सगुनी गुनजान । कवीजन आस तणो तरुराज, रवी ससि मेर समो वड साज ||४|| कहावत हिंदनको सुलतान, दधी (दली? ) लग अन अखंड प्रमान । अनोपम राजकुली वडनूर, बहो चीरजीव तपो जगसूर ॥५॥ अनुसंधान- २२ रखें सुर छप्पन कोटि सदाय, करें सुर तेतिस कोडि सहाय । गुमानतणां सुत मांन नरेस, तपो तव राज सदा सुविसेस ||६|| धरा प्रतिपालन नेक कहाय, हुओ बजमाल सवाय सवाय । सदा दीप विजै कविनाम, कह्यौ इह छंद सुमोत्तिय दाम ||७|| अथ कवित ||३१ ॥ छत्रि सब वंसमें राठोड बंस सूरवीर, गुमानकुल सिंधु मुगता अदभूतीको प्रबल प्रचंड जस तेरो देस देसनमें, रूप कामदेव सो भूषन कनक मोतीको । सूरवीर दान मांन दीपे जस खाग ताग, तो में सुभ लच्छन हें सुंदर सपूतीको, दीप कविराज आज मान महीपाल दीपें, Jain Education International तेरे भुज डंडन पर मंडन रजपूतीको ॥२०॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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