Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 15 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 4
________________ निवेदन 'अनुसन्धान'नो १४मो अंक जरा अशुद्धिप्रचुर छपायो छे, ते बदल अमने खेद छे. अमां अगत्यनो भाग 'Press' भजवी गयो छे, एवो बचाव करवानो अर्थ नथी ज. अमारी जूनी फरियाद आजे पण यथावत् छे : सामग्री अंगेनी. नीवडेल/नवोदित अभ्यासी साधुजनो/संशोधको तरफथी सामग्री मळती रहे, तो अमे पण वैविध्य पीरसी शकीए. अमे हजी आ क्षेत्रना अभ्यासीओने आमां रस लेतां करी शक्या नथी, एने अमारी त्रुटि गणीशुं ? ___ अध्येताओने तेमना शोधलेखो तेमज संपादित कृतिओ अनुसन्धान माटे मोकलवा अमारं पुनः पुनः आमंत्रण छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 118