Book Title: Anekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 28
________________ अनेकान्त/२५ ली। उन्होंने कार्तिक कृष्ण (वीद) त्रयोदशी को दीक्षा ली थी। इसके प्रमाण निम्न १६ ग्रन्थ हैं - १. तिलोयपण्णति ४/६५६, २. हरिवंश ६०/२२६-२३६ पृ. ६४७, ३. महापुराण ५२, ४. जै. सि. कोष २/तीर्थ प्रकरण, ५. जैन साहित्य का प्राचीन इतिहास १/१२४, ६. राज. के जैन अतिशय क्षेत्र परिचय एवं पूजा पृ. २७, ७. धर्मोद्योत प्रश्नोत्तर माला पृष्ठ ६८, ८ जैन भारती पृष्ठठ २५२ (पू. ज्ञानमतीजी), ६. महापुराण अपभ्रंश संधि-४३ पृष्ठ ६७ भाग-३, १०. आशाधरकृत कल्याणमाला-१०, ११. जैन भूगोल (भिषीकरजी, सोलापुर), १२. कवि वक्तावरजी कृत पूजा, १३. रामचन्द्र कृत पूजा, १४. पद्मप्रभस्तवनम् पृष्ठ ४, १५ तीर्थकरों का लेखा पृष्ठ २ (श्वेताम्बर सूत्र तथा ग्रन्थ दोनों में का. कृष्णा तेरस ही दीक्षातिथि है।), १६. ज्योतिष शास्त्र के नियमानुसार भी का. कृ. १३ ही उचित है। क्योंकि चित्रानक्षत्र में दीक्षा ली थी। चित्रा नक्षत्र का. कृ. १३ को ही पड़ता है। कार्तिक शुक्ल तेरस को नहीं पड़ता। १७. षट् प्राभृत की टीका (श्रुतसागरी वृत्ति) में दर्शनपाहुड की टीका में लिखा है कि “यदि कदाग्रहं न मुञ्चन्ति तदा समर्थैरास्तिकैरुपानद्भिरगुंथलिप्ताभिर्मुखे ताड़नीयाः, तत्र पापं नास्ति।” अर्थ-यदि नास्तिक पुरुष युक्तिपरक वचनों को नहीं माने तो फिर सक्षम आस्तिक पुरुष उनके मुख पर टट्टी से भरा जूता मारें। इसमें कुछ भी पाप नहीं है। समीक्षा-टीकाकार ने शब्दों को चयन अच्छा नहीं किया। १८. बोधपाहुड़ की टीका में लिखा है कि चैत्यगृहं षट्कायानां हितङ्करं स्वर्गमोक्षकारकं भणितं... । चैत्यगृहार्थ या मृतिका खन्यते सा काययोगेन उपकारं चैत्यगृहस्य कृत्वा शुभम् उपार्जयति। तेन तु सा पारम्पर्येण स्वर्गमोक्षं लभते। यज्जलं चैत्यगृहस्य कार्यम् आयाति तद्वत् तदपि शुभभाग भवति.....। अर्थ-जिन मंदिर को जिनागम में षट्कायिक जीवों का हितकारक और मोक्ष को प्राप्त कराने वाला कहा है। चैत्यगृह के निर्माण के लिए जो मिट्टी खोदी जाती है वह काययोग के द्वारा चैत्यगृह का उपकार करके पुण्यकर्म का उपार्जन करती है और उस पुण्यकर्म के द्वारा परम्परया स्वर्गमोक्ष को प्राप्त

Loading...

Page Navigation
1 ... 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170