Book Title: Anekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 67
________________ अनेकान्त/२६ भाष्य- महोदधिगन्धहस्तिटीकान्यायावतारदिग्रन्थेभ्यो निरीक्षणीयः।”-पृष्ठ 320 इनमें से पहले उल्लेख में ग्रन्थ का नाम केवल 'गन्धहस्ति' आया है, परन्तु दूसरे उल्लेख में ग्रन्थ का पूरा नाम 'भाष्यमहोदधिगन्धहस्ति टीका' लिखा है। यहाँ ध्यान देने योग्य विशेष बात यह है कि तत्त्वार्थाधिगमभाष्य पर 18 हजार श्लोक प्रमाण ‘बृहद्वृत्ति' लिखने वाले सिद्धसेनगणि का ‘गन्धहस्ति' विशेषण था। वे आचार्य भास्वामी के शिष्य थे और उन्हें 'गन्धहस्ति सिद्धसेनगणि' कहा जाता था। उनका समय 8वीं शताब्दी है। उन्होंने तत्त्वार्थाधिगमभाष्य पर जो बृहद्वृत्ति लिखी उसे स्याद्वादमंजरी में 'भाष्यमहोदधि' अर्थात् महाभाष्य कहा गया है। तत्त्वार्थाधिगमभाष्य पर लिखे जाने के कारण उसके महाभाष्य होने में कोई सन्देह नहीं है। इसीलिए तो उसे भाष्यमहोदधि कहा गया है। तथा उसी को ‘गन्धहस्ति टीका' भी कहा गया है। क्योंकि वह टीका ‘गन्धहस्ति' नामक साधु के द्वारा लिखी गई है। 'भाष्यमहोदधिगन्धहस्तिटीका' इस पद के नीचे टिप्पणी में लिखा है "गन्धहस्ति सिद्धसेनगणिविरचिता तत्त्वार्थाधिगमभाष्यबृहवृत्तिः । तदेव भाष्यमहोदधिः, तदेव गन्धहस्ति टीका।" इस प्रकरण से यह सिद्ध होता है कि श्वेताम्बर साहित्य में गन्धहस्तिमहाभाष्य का सद्भाव है, किन्तु दिगम्बर साहित्य में गन्धहस्तिमहाभाष्य था या नहीं, यह एक रहस्य ही बना हुआ है। संभव है कि 'अनेकान्त ज्ञान मन्दिर शोध संस्थान' बीना (म० प्र०) के संस्थापक श्रीमान् ब्र० संदीपजी जैन सरल द्वारा गन्धहस्तिमहाभाष्य की खोज के लिए घोषित 266666 रुपयों के पुरस्कार की विपुल राशि इस रहस्य पर पड़े हुए आवरण को उठाने में समर्थ हो सके। हम सब को इस विषय में उनकी सफलता के लिए श्रीमज्जिनेन्द्रदेव से कामना करना चाहिए। जैनं जयतु शासनम्। - 22 बी, रवीन्द्रपुरी, वाराणसी-5

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