Book Title: Anekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 134
________________ अनेकान्त / १३ क्या होता है ? अरहंत परमेष्ठी को भी भट्टारक कहा गया है। बड़े-बड़े आचार्यों को भी भट्टारक कहा गया है। भट्टारक पद इस ढंग से नहीं मिलता। वे श्रमणों में श्रमणोत्तम, प्रभावक होते थे । अन्य व्यक्तियों पर उनके वचनों का प्रभाव रहता था, उज्ज्वल चरित्र रहता था। उनके लिये भट्टारक उपाधि 'भट्टान पण्डितान् स्याद्वाद परीक्षणार्थं आरयति, प्रेरयति इति स भट्टारकः' होती थी । ऐसे मुनि महाराज की भट्टारक संज्ञा होती थी जो स्याद्वाद के माध्यम ये अनेकांत के माध्यम से, वस्तु तत्व को समझाने में माहिर रहते थे, उनको भट्टारक की उपाधि दी जाती थी । वे विद्वानों को चुनौती देते थे। जो जिनत्व स्वीकारता नहीं था, जिनत्व में कमी मानता था, उन्हें वह प्रेरित करते थे । कहते थे हमारे से शास्त्रार्थ कर लीजिये | अनेकांत क्या है ? स्याद्वाद क्या है ? श्रमणतत्व क्या है ? उसे सुनना और समझना हो, तो आईये मेरे सामने । वे इस प्रकार की खुली चुनौती देने वाले होते थे । वे वस्त्रधारी भट्टारक नहीं हुआ करते थे। लेकिन आज मुनियों के बराबर पद देकर उनको बहुमान दिया जा रहा है। ऐसा अंधविश्वास समाज में समझ नहीं आता। थोड़ा बहुत शास्त्र को अवश्य ही पढ़ना चाहिये। फिर बाद में इस प्रकार के समर्थन में खड़े होना चाहिये । यदि नहीं है, ऐसा ही करना है; तो हमारे पास नहीं आवें । इसका क्या इलाज है ? इसका क्या जवाब है ? सब जवाब तो आगम में विद्यमान हैं । आज महावीर भगवान के निर्वाण को हुए 2500 वर्ष पूर्ण हो गये हैं। आज तक जो ये श्रमण परंपरा चली, यह उसी वीतराग परंपरा का प्रतीक है। I हम लोगों के लिये जो मार्ग मिला है वह भावपरक मार्ग है । जो किंचित् मात्र भी परिग्रह रखता है, वहां पर वीतरागता तीन काल में संभव नहीं है । महान् आचार्य कुंदकुंद की घोषणा है कि वस्त्रधारी सिद्धि को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। वस्त्रधारी जो घर में तीर्थकर जैसे भी रहते हैं, उनको मुक्ति नहीं मिलती। घर बसाने वालों को मुक्ति नहीं मिल सकती । घर बसाकर के छोड़ तो मुक्ति मिल जायेगी। यदि अपने नाम से कोई भी तिलतुष मात्र भी परिग्रह रखा तो मुक्ति नहीं मिल सकती। ऑनरशिप, स्वामीपन रखने से मुक्ति नहीं मिलेगी। आज तो सारा का सारा स्वामीपना रखा जा रहा है । इसकी यदि आवश्यकता है, तो आप रख लीजिये क्षेत्रों का जीर्णोद्वार, रक्षा, नवनिर्माण आदि

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