Book Title: Anekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 159
________________ अनेकान्त/३८ अधिकार हो गया। आगे जाकर किसी प्रकार का झगड़ा न हो, इसके लिए श्वेताम्बर संघ ने यह निश्चय किया कि अब से जो नई प्रतिमायें बनवायी जायें, उनके पाद मूल में वस्त्र का चिन्ह बना दिया जाय। इस पर दिगम्बरों को क्रोध आ गया और उन्होंने अपनी प्रतिमाओं का नग्न बनाना शुरू कर दिया। यही कारण है कि संप्रति राजा आदि की बनवाई हुई प्रतिमाओं पर वस्त्र लांछन नहीं है और आधुनिक प्रतिमाओं पर है। इससे पूर्व की प्रतिमाओं पर वज्र लांछन भी नहीं है और स्पष्ट नग्नत्व भी नहीं है। इस कथन से यह बात अच्छी तरह सिद्ध होती है कि पूर्वोक्त विवाद के पहले दोनों प्रतिमाओं में भेद नहीं था। दोनों एकत्र होकर उपासना करते थे। उस समय तक लड़ने झगड़ने को कोई कारण न था। अब तो दोनों की प्रतिमाओं और उपासना विधि में भी बहुत अन्तर पड़ गया है। रत्नमण्डल गणिकृत सुकृतसागर नाम के ग्रन्थ पेथड़तीर्थ यात्राद्वय प्रबन्ध में लिखा है कि प्रसिद्ध दानी पेथड़ शाह शजय की यात्रा करने संघ सहित गिरनार पहुंचे। उनके पहले यहाँ दिगम्बर संघ आया हुआ था। उस संघ का स्वामी पूर्णचन्द्र नाम का अग्रवालवंशी धनिक था। वह देहली का रहने वाला था। उसे अलाउद्दीन शाखीनमान्य विशेषण दिया है। अर्थात् वह कोई राजमान्य पुरुष था। उसने कहा कि पर्वत पर पहले हमारा संघ चढ़ेगा; क्योंकि एक तो हम लोग पहले आए हैं, दूसरे यह तीर्थ भी हमारा है। यदि यह तीर्थ तुम्हारा है तो इसका प्रमाण दो। यदि भगवान् नेमिनाथ की प्रतिमा पर अंचलिका और कटिसूत्र प्रकट हो जाय तो इसे तुम्हारा तीर्थ मान लेंगे। भगवान् भव्य जनों के दिए हुए आभरण सहन नहीं कर सकते, इसलिए इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह तीर्थ हमारा है। इस पर पथेड़गाह बोले कि भगवान आभरणादि सहन नहीं कर सकते, इसका कारण यह है कि उनकी कीर्ति बारह योजन तक फैली हुई है। आम के वृक्ष पर तोरण की ओर लंका में लहरों की चाह नहीं होती। जिस प्रकार फलोधी (मारवाड़) ने प्रतिमाधिष्ठित देव आभूषणापहारक हैं, उसी तरह यहाँ भी हैं। यदि यह तीर्थ तुम्हारा है तो शैवों का भी हो सकता है; क्योंकि यह पर्वत लिंगाकार है और गिरि-वारि धारक है। इस तरह वादविवाद हो रहा था कि कुछ वृद्धजनों ने आकर कहा अभी तो इस झगड़े

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