Book Title: Anekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 160
________________ अनेकान्त/३६ को छोड़ दो और यात्रा को चलो। वहाँ इन्द्रमाला (फूलमाला) लेते समय इसका निर्णय हो जायेगा। उस माला को जो सबसे ज्यादा धन देकर लेगा यह तीर्थ उसी का सिद्ध हो जाएगा। निदान दोनों संघ पर्वत पर गए और दोनों ने अभिषेक, पूजन, ध्वजारोहण, नृत्य, स्तुत्यादि कृत्य किए। इसके बाद जब इन्द्रमाला का समय आया, तब श्वेताम्बर भगवान के दायें और दिगम्बर बायें बैठ गए। इसी से निश्चय हो गया कि कौन हारेगा और कौन जीतेगा। इन्द्रमाल की बोली-बोली जाने लगी। एक दूसरे से अधिक बढ़ते-बढ़ते अन्त में श्वेताम्बरों ने 56 धड़ी (पसेरी) सोना देकर माला लेने का प्रस्ताव किया। दिगम्बर अभी तक तो बराबर बढ़े जाते थे, परन्तु अब वे घबराए और सलाह करने लगे। उन्होंने संघपति से कहा लुण्ठितैरिव भूत्वा च फलं किं तीर्थवालने। इमं न हि समादाय शैलेशं यास्यते गृहे।। अर्थात् इस तरह लुटकर तीर्थ लेने से क्या लाभ? क्या इस पर्वतराज को उठाकर ले चलना है। अन्त में पूर्णचन्द्र ने कह दिया कि आप ही माला पहिन लीजिए। इससे दिगम्बर मुरझा गए और अपना-सा मुँह लिए यात्रा करके नीचे उतर आए। यह कथा यद्यपि श्वेताम्बरों की धनाढ्यता, उदारता और गिरनार पर श्वेताम्बराधिकार सिद्ध करने के मुख्य अभिप्राय से लिखी गई है, तो भी इसमें बहुत कुछ ऐतिहासिक तथ्य है और यह सिद्ध होता है कि उस समय दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों एक मन्दिर में उपासना करते थे और इन्द्रमाला की बोली दोनों के समूह के बीच बोली जाती थी। इससे यह भी मालूम होता है कि उस समय गिरनार के मूलनायक नेमिनाथ की प्रतिमा आभूषणों से सुसज्जित और कटिसूत्र तथा अंचलिका से भी लांछित नहीं थी। इसी तरह उदाहरण के तौर पर फलौधी तीर्थ की प्रतिमा के विषय में कहा है कि वहाँ का प्रतिमाधिठित देव भूषणापहारक है, से जान पड़ता है कि वहाँ भी उस समय (कम से कम रत्नमण्डनगणि के समय में) प्रतिमाओं को भूषणादि नहीं पहनाए जाते थे। श्री रत्नमन्दिर गणिकृत उपदेश तरंगिणी (पृ. 148) में लिखा है“सौराष्ट्र देश के गोमण्डल (गोंडल) निवासी धाराक नाम के संघपति थे।

Loading...

Page Navigation
1 ... 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170