Book Title: Anekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 154
________________ अनेकान्त / ३३ नमोऽस्तु नहीं कहना चाहिए परन्तु इच्छाकार कहना चाहिए। (देखिए सूत्रपाहुड़ की गाथा 13 ) भक्ति चरणानुयोग का ही विषय है क्योंकि जिस आत्मा का ग्यारहवां गुणस्थान रूप परिणाम है वही आत्मा अपने परिणामों से च्युत होने पर समय मात्र में प्रथमादि गुणस्थानवर्ती हो जाता है जहां परिणामों की स्थिति ऐसी है वहां छद्मस्थ जीव परिणाम देखकर भक्ति कर नहीं सकता। इसलिए भक्ति नियम से चरणानुयोग में होती है । चरणानुयोग की अपेक्षा जब तक वस्त्रादिक का त्याग नहीं किया जाता तब तक छठवां गुणस्थान माना नहीं जाता। इसी कारण स्त्रियों का पंचम गुणस्थान ही माना जाता है और उनकी पंचम गुणस्थान के अनुकूल भक्ति करनी चाहिए । जब वस्त्रादिक का त्याग और केंशलोंच नहीं होगा तब तक चरणानुयोग तीर्थकर का छठवां गुणस्थान स्वीकार नहीं करता है । चरणानुयोग मात्र बाह्म प्रवृति देखता है कि जो प्रवृत्ति छद्मस्थ जीवों के ज्ञानगोचर है । इसीलिए चरणानुयोग में ही पद के अनुकूल भक्ति होती है । चरणानुयोग ब्राह्य वस्तु के संयोग में परिग्रह मानता है । दान देने से चरणानुयोग कहता है महादानेश्वर धर्मात्मा है। जबकि करणानुयोग कहता है कि कहा दानेश्वर है, महामान कषायी पापी आत्मा है। मान से धन का त्याग कर रहा है। करणानुयोग और चरणानुयोग परस्पर विरोधी कथन करते हैं । चरणानुयोग रस छोड़कर भोजन लेने वालों को धर्मात्मा कहता है जब करणानुयोग कहता है कि भोजन में महान् लालसा है इस कारण पापी है। जिसने स्त्री का त्याग किया है उसको चरणानुयोग कहता है ब्रह्मचारी है। जब करणानुयोग कहता है वह तो भाव से नारी सेवन करने से भोगी है। चरणानुयोग कार्य देखकर कहता है कि मनुष्य उच्च एवं नीच गोत्री होता है जब करणानुयोग हिम्मत से कहता है कि मनुष्य नीच गोत्री होता ही नहीं है, उच्चगोत्री में ही मनुष्य पर्याय मिलती है। संमूर्छन मनुष्य जिसकी आयु श्वास के अठारहवें भाग मात्र है वह भी उच्चगोत्री है (देखिए गोम्मटसार गाथा 13 और 2851) I करणानुयोग - करणानुयोग बाह्य पदार्थों को अर्थात् नोकर्म को साधक-बाधक नहीं मानता है परन्तु कर्म को ही बाधक मानता है और कर्म के अभाव को

Loading...

Page Navigation
1 ... 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170