Book Title: Anekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 140
________________ अनेकान्त/१६ गए। पूजा, विधान, अनुष्ठान आदि का सारा अधिकार इन्हीं के हाथों केन्द्रित हो गया। इनके शिकंजे में फँसकर जनता घुटन महसूस करने लगी, फलतः राजस्थान में विद्वत् वर्ग की ओर से इनका जोरदार विरोध हुआ । इस विरोध की आँधी ने पूरे उत्तर भारत को लपेट में ले लिया, फलस्वरूप पुरानी भट्टारक पीठें समाप्त हो गयीं। समाज के विरोध के कारण नए भट्टारक नहीं बन पाए । दक्षिण में अवश्य यह प्रथा कायम रही; क्योंकि वहाँ की राजनैतिक परिस्थितियाँ दूसरी थीं। इसमें भी कोई सन्देह की बात नहीं कि इन भट्टारकों ने आप काल में जैनधर्म और संस्कृति का बहुत बड़ा संरक्षण किया, किन्तु यह भी कटु सत्य है कि कुछ अधकचरे और अन्य धर्मों से आए भट्टारक नामधारियों ने जैन साहित्य में तरह-तरह की मिथ्या मान्यतायें भी घुसा दीं, जिनका समय-समय पर विरोध होता रहा, यह विरोध आज भी कायम है । उपर्युक्त उल्लेख से यह स्पष्ट है कि भट्टारक प्रथा दिगम्बर साधु के अवमूल्यन के फलस्वरूप उदय में आयी थी, किन्तु आज की परिस्थिति में जबकि साधु अपनी चर्या का निर्वाह अच्छी तरह से कर सकता है और कुछ मुनिसंघों में यह निर्दोष चर्या अच्छी तरह दिखायी भी दे रही है, भट्टारक के रूप में मुनि का अवमूल्यन उचित नहीं । हो सकता है बालाचार्य जी प्रारम्भ में नग्न दिगम्बर रूप में भट्टारक पद को स्वीकार करें, किन्तु भट्टारकों में जो दोष आ गए थे, उनसे वे बच नहीं सकते। मैं पूछना चाहता हूँ कि नग्न दिगम्बर जैनमुनि का डोली में बैठालकर भव्य शोभायात्रा निकालना क्या मुनिपद का अवमूल्यन नहीं है। यदि मुनि को पैरों से चलने की या पैरों से ठहरने की सामर्थ्य नहीं रहे तो उसे सल्लेखना ग्रहण कर लेना चाहिए, यह हमारे आगम ग्रन्थ कहते हैं । समाज नग्न दिगम्बर साधु को तो सिर माथे बैठा सकती है, किन्तु डोली का भार उसके लिए असह्य है और यदि इस प्रकार के उपक्रमों को आगे बढ़ाया गया तो उसका जोरदार विरोध होगा; क्योंकि जिनेन्द्र भगवान के मार्ग में तिल, तुषमात्र, अणुमात्र भी परिग्रह का निषेध है । परिग्रहधारी न नग्न दिगम्बर मुनि हो सकता है, न होना चाहिए। मात्र बाह्य नग्नता को साधुत्व का आधार माना जाएगा तो पशु, पक्षी भी नग्न रहते हैं । उनमें भी पूज्यता स्वीकार करनी पड़ेगी ।

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