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अनेकान्त/21 गये थे। अधिवेशन में उत्पात मचाने वालों के इस घिनौने कृत्य की भर्त्सना भी की गयी।
कुछ साधु-सन्तों ने जमीन-जायदादें अपने नाम करा रखीं हैं, उन सबके समाजीकरण का प्रस्ताव भी अधिवेशन में पारित किया गया। इन मुनियों के कदाचरण से लोगों में भारी रोष है और उनका यह सर्वसम्मत मत है कि अधिवेशन में पारित प्रस्तावों के क्रियान्वन के लिये जो भी कानूनी, सामाजिक अथवा धार्मिक कार्यवाही जरूरी हो, वह अविलम्ब और पूरी दृढ़ता के साथ की
जाये।
अधिवेशन के बाद भी स्थानकवासी समाज के प्रमुख और प्रबुद्ध लोगों में गम्भीर चिन्तन चल रहा है। ऐसे ही लोगों ने एक बैठक में अल्पवय में दी जाने वाली अपरिपक्व दीक्षाओं पर भी प्रतिबंध लगाने की अपील की है। उनका मत है कि ऐसे साधु ही युवावस्था में पहुंचकर अमर्यादित आचरण करने लगते हैं। ऐसे साधु-साध्वियों के पुनर्वास का सुझाव भी दिया गया है।
यह जानकारी लोकप्रिय राष्ट्रीय दैनिक “पंजाब केसरी” के दिनांक 19, 22 एवं 23 जुलाई के अंकों में विस्तार से प्रकाशित हो चुकी है। उनकी कतरनें हमें महासभा के प्रमुख सूत्रधार माननीय श्रीमान् उम्मेदमल जी पाण्ड्या के सौजन्य से प्राप्त हुई हैं। श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन महासंघ (पंजीकृत) के मुखपत्र “महावीर मिशन" के जुलाई अंक के पृष्ठ 20-21 पर भी इस अधिवेशन की सम्पूर्ण कार्यवाही का प्रामाणिक विवरण प्रकाशित हुआ है। महासंघ के महामंत्री श्री रोशनलालजी जैन ने कृपापूर्वक हमें जून-जुलाई के अंक सुलभ करा दिये हैं। इन अंकों से स्थानकवासी समाज की जागरूकता का अच्छा परिचय मिलता है। हम क्या करें?
दुर्भाग्य से अपना दिगम्बर जैन समाज भी ऐसी लज्जास्पद घटनाओं की गिरफ्त में है। ऐसे ही एक काण्ड की अनुगूंज तो पिछले वर्षों में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई महीनों तक लगातार सुनायी देती रही। रेडियो और राष्ट्रीय समाचार-पत्रों की सुर्खियों में भी यह प्रसंग चटखारों के साथ छपता