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अनेकान्त/6
होना चाहिए, ऐसा निश्चय से लगता है।" पण जपान्द सूत्रांना नमनद्रव्यस्त्री वर्णन करणार आहे सीखात्री मजराजांची मानहानी परंतर महाराज कुंभलगिरि एनावरह वर्त त्याला सरवर धारणदेती.
त्यांची सक्षाकरण्यासाजन परमागवावरकनिष्ठ कीगावचन्द्रमरारामगांधी नमकटम्बगेरी आगरमा अनिमदरीनामामाही मी ब्रीजीवरामी तमददोशी यांच्याबरोबर गेलादान मला सामनराला मन्तिमदनपाली तीरत्वमाछती एक मतात्यांच्याजवनजाण्यासलोकप्रतिनिधि श्रीजगावंदजीमा महराला निकायौताउठग सागली त्यांनी मला एका दिवशी प्राचार्य महाराजा दान -पान महाराजांनादिमानसन्मामुलाबजनताल जरमप्रभ ल. मीविनायंदनसलमानांदसीमित
त्यानभानामहाराज जमिनरास पक्कानीलन -सूरमारतीवर्णनकरणारंजाटेक्ने मनसायबाम
पाहिजे वाटते. परम पूज्याराजांब वरन एनमहाराजांच्या मत्पन्नपीवनिराग्रहतीवरम मनायाबगुल वस्तीमा परमानन्द टला श्रीमानबीयानन्द मानी शासभाकीही जाती
बन्मागवायामनात संजयजयजा डावी,, जनसमा गयललेगकारालग
न.1210vn
परमपूज्य महाराजश्री का वचन सुनकर उनकी सत्यान्वेषी प्रकृति का पुनः विश्वास हुआ। इससे हम लोगों को बड़ी प्रसन्नता हुई। क्योंकि इससे 'संजद' पद संबंधी विवाद भी सदा के लिए हल हो गया है।
हमारी भावना बनी है कि आचार्य शान्तिसागर जी को परम्परा का अनुसरण करते हुए हमारे 'हिमालय के दिगम्बर मुनि' भी सल्लेखना के अन्तिम चरण में यह स्पष्ट घोषणा करेंगे कि दिगम्बर आगम, जो दृष्टिवाद से प्रसूत हैं-उनकी भाषा सर्वथा 'अर्धमागधी' ही है-जैसा कि परम्परित पूर्वाचार्यों ने दर्शनपाहुइटीका, तिलोयपण्णत्ति, धवला, बृहत्स्वयम्भूस्तोत्र आदि में उल्लेख किया है। ऐसे में ही जिनवाणी की प्रामाणिकता सन्निहित है और भावी परम्परा को जिनागम में दृढ़ श्रद्धानी बनाने में समर्थ है। इत्यलम् अति विस्तरेण ।
-सम्पादक