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उपनिषदों में दिगम्बरत्व के उल्लेख
-डॉ. रमेशचन्द्र जैन
आचार्य ज्ञानसागर महाराज ने दयोदय चम्पू में दिगम्बरत्व सम्बन्धी उपनिषदों के उद्धरण दिए हैं-नारद पारिव्राजकोपनिषद् में लिखा है कि मुनि दो प्रकार का होता है। एक तो वह जो कोपीन मात्र धारण करता है दूसरा वह जो बिल्कुल नग्न होता है, जो ध्यान में तत्पर रहता है और यही ज्ञानवान् योगी परमात्म अवस्था को प्राप्त कर सकता है।'
मैत्रेयोपनिषद् के तीसरे अध्याय के उन्नीसवें सूत्र में भी लिखा है कि देशकाल की अपेक्षा न करके मैं दिगम्बर सुखी हो रहा हूँ।
सन्यासोपनिषद् में कहा है
सब कुछ छोड़कर देहमात्र को धारण करते हुए दिगम्बर बन जावे, तत्काल के पैदा हुए बालक सरीखा निर्विकार हो जावे तथा सन्यास लेकर तत्काल के पैदा हुए बालक सरीखा होता है वही ज्ञान वैराग्यशाली होता है। वैदिक पद्मपुराण में दिगम्बर साधु की चर्चा
वैदिक पद्मपुराण में राजा वेन की राजसभा में दिगम्बर साधु के प्रवेश की चर्चा इस प्रकार की गयी हैपुरुषः कश्चिदायातश्छद्मलिंगधरस्तदा। नग्नरूपो महाकायः शिरोमुण्डोमहाप्रभः ।। ६ ।। मार्जनी शिखिपत्राणां कक्षायां सहि धारयन् । गृहीते पानपात्रं तु नालिकेरमयं करे।। ७ ।। पठमानोह्यासच्छास्त्रं वेदधर्म विदूषकम् । यत्र वेनो महाराजस्तत्रायातस्त्वरोन्वितः ।। ८ ।। सभायां तस्य वेनस्य प्रविवेश स पापवान्। तं दृष्टवा समनुप्राप्त वेनः तदाऽकरोत् ।। ६ ।।
-पद्मपुराण भूमिखण्ड-प्रकरण ३७ तब कोई छद्म वेश धारण करने वाला पुरुष आया। वह नग्न रूप, महाकाय था, उसका सिर मुँडा हुआ था। वह महाप्रभायुक्त था। वह अपने