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गन्धहस्ति महाभाष्य का रहस्य
- प्रो० उदयचन्द्र जैन, सर्वदर्शनाचार्य
ऐसा कहा या सुना जाता है कि आचार्य समन्तभद्र ने तत्त्वार्थसूत्र पर 'गन्धहस्ति' नामक महाभाष्य की रचना की थी । किन्तु आश्चर्य की बात है कि द्वितीय शताब्दी में निर्मित इस महान् ग्रन्थ का आजतक किसी को दर्शन नहीं हुआ। अभी तक न तो किसी विद्वान् ने उसको देखा है और न उसके किसी वाक्य या शब्द को 'तदुक्तं गन्धहस्ति महाभाष्ये' लिखकर उद्धृत किया है। ऐसा प्रतीत होता है कि 10वीं शताब्दी के बाद के जिन विद्वानों ने गन्धहस्ति महाभाष्य के विषय में जो कुछ शब्द लिखे हैं वे जनश्रुति के आधार पर ही लिखे हैं, किसी प्रामाणिक आधार पर नहीं । अकलंकदेव ने तत्त्वार्थसूत्र पर 'तत्त्वार्थवार्तिक' की रचना की तथा विद्यानन्द स्वामी ने इसी पर 'तत्त्वार्थश्लोक वार्तिक' की रचना की । परन्तु यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन महान् आचार्यों को गन्धहस्ति महाभाष्य की गन्ध तक नहीं मिली। इसका कारण क्या है?
महान् अन्वेषक और चिन्तक आचार्य पं० जुगलकिशोर जी मुख्तार ने स्वलिखित 'स्वामी समन्तभद्र' नामक पुस्तक में पृष्ठ 212 से 243 तक गन्धहस्तिमहाभाष्य के विषय में बहुत ही सूक्ष्म विचार किया है। संभवतः उतना गंभीर विचार अन्य किसी विद्वान् ने नहीं किया। इसके फलस्वरूप वे केवल इस निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि आचार्य समन्तभद्र रचित महाभाष्य नामक कोई ग्रन्थ अवश्य रहा है । परन्तु उसके अस्तित्व के विषय में वे कोई ठोस प्रमाण उपस्थित नहीं कर सके। इसी प्रकार महान् विचारक श्रीमान् डॉ० दरबारीलालजी कोठिया ने भी लगभग 50 वर्ष पूर्व गन्धहस्ति महाभाष्य के