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अनेकान्त/६ प्रतिष्ठाओं में विघ्न-बाधायें : चिन्ता का विषय
पिछले कुछ वर्षों और महीनों में इस तरह के समारोहों में कई दुर्घटनायें हुई हैं। बिजली के शार्ट सर्किट से कई उत्सवों के पंडाल पलक झपकते-झपकते राख के ढेर में तब्दील होते हुए देखे गये हैं। सोनागिरि, आगरा, जयपुर आदि के अग्निकाण्ड ज्यादा पुराने नहीं हैं। गनीमत केवल यह रही है कि अग्निकाण्ड के समय पंडाल में कोई कार्यक्रम नहीं चल रहे थे, इसलिए धन-हानि तो हुई किन्तु जन-हानि नहीं। फिर भी इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इस पर मिल-बैठकर कुछ विचार तो करना ही चाहिए था, जो आज तक नहीं किया। शायद किसी बड़ी घटना का इन्तजार रहा होगा। आखिर वे भी सामने
आ ही गईं। पिछले दिनों बड़ौत में सम्पन्न पंचकल्याणक महोत्सव के अन्तिम दिन रथयात्रा-मार्ग पर बिजली के तार उठाते समय करंट आ जाने से दो श्रमिक बालकों की मृत्यु हो गई और अभी हाल में श्री सम्मेदशिखरजी के तीस चौबीसी प्रतिष्ठा महोत्सव के पंडाल में लगी भयानक आग से सैकड़ों लोगों के शरीरों पर बड़े-बड़े फफोले पड़ गये। जले हुए लोगों में से पन्द्रह को गम्भीर हालत में गिरिडीह, बोकारो, हजारीबाग और कलकत्ता के अस्पतालों में दाखिल करना पड़ा, जिनमें से अब तक चार मौतों की पुष्टि हो चुकी है। तीर्थंकर के पिता एवं धर्मनिष्ठ उद्योगपति भाई आर० के० जैन की पूज्य माताजी भी उनमें से एक हैं। स्वयं माता-पिता एवं सौधर्म इन्द्र-इन्द्राणी भी आहत हुए हैं। सदमे से भी एक मृत्यु हुई है, ऐसी सूचना मिली है। इस घटना ने देश के लाखों लोगों को उद्वेलित कर दिया है। यदि कार्यक्रम चल रहा होता तो सैकड़ों मौतें हो सकती थीं, यह तर्क भी अब किसी की आँख के आँसू नहीं पोंछ सकता। किसी चमत्कार की आशा में इस उत्सव के निर्विघ्न समापन का भरोसा अपने मन में संजोये बैठे आयोजकों का हृदय भी इस दुर्घटना से चूर-चूर होकर रह गया है। अब भी यदि हमने अपनी उत्सव प्रिय रीति-नीति का पुनरावलोकन नहीं किया तो इतिहास कभी हमें क्षमा नहीं करेगा। पंचकल्याणक महोत्सव : तब और अब
पिछले तीस-पैंतीस वर्षों में पंचकल्याणक प्रतिष्ठाओं के स्वरूप में तेजी