Book Title: Anekant 1999 Book 52 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 33
________________ अनेकान्त/३० जिह्वा वही है जो जिनेन्द्र भगवान का स्तवन करती है। जो जिनेन्द्र पर अनुरक्त रहता है, वही चित्त कहा जाता है। जो हाथ जिनेन्द्र पूजा करने वाले हैं, वही हाथ प्रशंसनीय हैं। जब क्षपणक को नापित ने अपने घर आने का निमंत्रण दिया तो उसने उत्तर दिया-भोः श्रावक! धर्मज्ञोऽपि किमेवं वदसि। किं वयं ब्राह्मण समानाः। यत् आमन्त्रणं करोषि। वयं तत्काल परिचर्यया भ्रमन्तो भक्तिभाजं श्रावकमालोक्य तस्य गृहे गच्छामः। तेन कृच्छ्रादभ्यर्थितास्तदगृहे प्राणधारण मात्रामशन क्रियां कुर्मः तद्गम्यताम्। नैवं भूयोऽपि वाच्यम। अर्थात् हे श्रावक! धर्मज्ञ होकर भी ऐसा क्यों कहते हो, क्या हम लोग ब्राह्मण जैसे हैं, जोकि हमें निमंत्रण दे रहे हो, सदैव हम लोग घूमते हुए उस समय की उपासना से भक्तिमान् श्रावक को देखकर उसके घर जाते हैं और उसके द्वारा बड़े प्रयत्नपूर्वक प्रार्थित होकर ही उसके घर में केवल प्राणाधारण मात्र के लिए भोजनविधि करते हैं, इसलिए जाइए, फिर कभी ऐसा न कहना। उपर्युक्त चर्या आज भी नग्न दिगम्बर साधुओं में पायी जाती है। किञ्चित् लोभाकृष्ट किसी दिगम्बर साधु के लिए यहाँ कहा गया है एकाकी गृहन्त्यक्तः पाणिपात्रो दिगम्बरः सोऽपि संवाह्यते लोके तृष्णया पश्य कौतुकम्।। १५ ।। जीर्यन्ते जीर्यतः केशाः दन्ताः जीर्यन्ति जीर्यतः। चक्षुः श्रोत्रे च जीर्येते, तृष्णैका तरुणायते।। १६ ।। एकाकी, गृहत्यागी, पाणिपात्री और दिगम्बर साधु भी लोक में तृष्णा के द्वारा आकृष्ट कर लिया जाता है, यह आश्चर्य देखो। वृद्धजन के केश श्वेत हो जाते हैं, दॉत भी जीर्ण शीर्ण तथा शिथिल हो जाते हैं, नेत्र और कान भी जीर्ण हो जाते है, किन्तु एक तृष्णा तरुण हो जाती है। बाणभट्ट की कृतियों में दिगम्बर साधुओं का उल्लेख बाणभट्ट (सातवीं शताब्दी ई. का पूर्वाद्ध) ने अपनी कृति कादम्बरी में क्षपणकों का उल्लेख किया है। शबरों के वर्णन में वे कहते हैं कैश्चित्क्षपणकैरिवमयूरपिच्छधारिभिः१०

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