Book Title: Anekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 22
________________ अनेकान्त/19 बाधा या अंतराय आ जाने पर वे बिना आहार के ही लोट जाते हैं। ऐसे कठिन व्रत का पालन उनकी आहार विधि को नही जानने वाले जैनों से रहित प्रदेश में संभव ही नहीं है। इस दृष्टि से ऊपर कहे गए प्रदेशों में पहले से ही जैन आबादी का होना आवश्यक है। अब इस बात पर विचार करना उचित होगा कि क्या चंद्रगुप्त मौर्य दक्षिण की ओर प्रस्थान करने का निश्चय करने के साथ ही जैन मुनि हो गए थे। दूसरी बात यह है कि उन्होंने कौन-सा मार्ग अपनाया था। इन दोनों प्रश्नों पर लिखित विवरण शायद उपलब्ध नहीं है। फिरभी यहां प्रयत्न किया जाएगा क्योंकि इन दोनों प्रश्नों के उत्तर का संबंध केरल आदि प्रदेशों में जैन धर्म से जुडता है। _____ चंद्रगुप्त का साम्राज्य फारस की सीमा को छूता था। उसने सेल्युकस के दांत खट्टे किए थे। उसकी आयु अकाल की भविष्यवाणी के समय केवल 50 वर्ष थी। इसलिएअकाल की क्रूर छाया से भयभीत होकर उसका एकाएक मुनि हो जाना संभव नहीं जान पडता। यह संभावना की जा सकती है कि अकाल की संभावना और उसके प्रजा के कष्ट के संबंध में उसने चाणक्य से अवश्य परामर्श किया होगा। चाणक्य (कौटिल्य) का परामर्श अर्थशास्त्र के चौथे अधिकरण, प्रकरण 78, अध्याय 3 मे उपनिपात प्रतीकार (दैवी आपत्तियों से प्रजा की रक्षा का उपाय) के अंतर्गत निम्नप्रकार दिया गया है। "दुर्भिक्षे राजा बीजभक्तोपग्रहं कृत्वाऽनुग्रहं कुर्यात्। दुर्गे सेतुकर्मे वा भक्तानुग्रहेण भक्त संविभागं वा। देश निक्षेपं वा। मित्राणि वा व्यपायेत्। कर्शनं वमनं वा कुर्यात्। निष्पन्नसस्वमन्य विषदं वा। सजनपदो यायात्। समुद्रसरस्तटाकानि वा संश्रयेत्। धान्यशाकमूलफलवापान्सेतुषु कुर्वीत्। मृगपशुपक्षिव्यालमत्सरम्भान् वा।" (हिंदी) राज्य में दुर्भिष पड़ने पर राजा की ओर से बीज और अन्न वितरण करके जनता पर अनुग्रह किया जाए। अथवा दुर्भिक्ष पीडितों को उचित वेतन देकर दुर्ग या सेतु आदि का निर्माण कराया जाए। काम करने में असमर्थ लोगों को केवल अन्न दिया जाए। अथवा उनका समीप के दूसरे दुर्भिक्षरहित देश तक पहुंचाने का प्रबंध कर दिया जाए। अथवा मित्र राजा से सहायता ली जाए। अपने देश के धनवान व्यक्तियों पर विशेषकर लगाकर तथा उनसे एकमुश्त रकम लेकर आपत्ति का प्रतीकार किया जाए। या तो जो देश धन-धान्य सहित दिखे, वहीं प्रजा सहित चला जाए। अथवा समुद्र के किनारे या बडे-बडे तालाबो के पास जाकर बसा जाए जहां पर कि धान्य, शाक, मूल, फल आदि की खेती की जा सके। अथवा मृग, पशु, पक्षी, व्याघ्र और मछली आदि का शिकार कर प्राण रक्षा की जाए (अनुवाद वाचस्पति गैरोला) चुद्रगुप्त ने बीज वितरण आदि सब कुछ किया होगा। वह स्वयं पूरे जंबूद्वीप का स्वामी था (महावंसो जिसमें श्रीलंका का इतिहास निबद्ध है।) इसलिए मित्र

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