Book Title: Anekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 101
________________ अनेकान्त/22 किया गया है। अर्थ संमवर्ण छन्द · जिनमे प्रथम और तृतीय चरण एक समान तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण एक समान हो- के अन्तर्गत कतिपय अर्ध समवर्ण छन्दों के नाम लक्षण और उदारहण दिए गए हैं। विषमवर्ण छन्द प्रकरण मे पदचतुरूध्य, आपीड, कलका, लवली, अमृत धारा, उद्गता, सौरभक, ललित और प्रवर्दमान इन नौ विषय छन्दों के लक्षण सोदाहरण दर्शाए गए है। इसके आगे मात्रिक छन्दो का विवेचन किया गया है। मात्रा छन्द के पांच गुणो का ज्ञान कराने के पश्चात् आर्या छन्द का पूर्वार्ध और उत्तरार्ध की दृष्टि से विस्तृत लक्षण और उदाहरण दिया गया है। अन्य मात्रिक छन्द गीति, उपगीति, उद्गीति, आर्य गोति, वैतालीय, औपच्छंदसिक, वक्त्र अनुष्टुप पथ्या वक्म, युग विपुला, अचलधृति चित्रा, उपचित्रा, शिक्षा अतिरुचिरा छन्दों के उदाहरण सहित लक्षण दिए गए है। इस छन्द विज्ञान प्रकरण के अन्त मे जैन दर्शन के महत्वपूर्ण प्राकृत छन्द गाथा का सोदाहरण लक्षण दिया गया है। साथ-साथ गाथा के सातो भेदों-गाहू गाथा, विगाथा, उद् गाथा, गाहिनी, सिंहिनी तथा स्कन्द का भी परिचय दिया गया है। उक्त विवेचन से यह तथ्य स्वय झलक कर सामने आता है कि ग्रन्थ रचयित्री को छन्द शास्त्र का जितना गहन ज्ञान है उतना बहुत कम विद्वानों को होगा। कल्याण कल्प तरू स्तोत्र की रचना से जैन समाज का एक बहुत बड़ा उपकार हुआ है। जैन समाज के पास स्तोत्र ग्रन्थ तो प्रचुत्तर संख्या में उपलब्ध है परन्तु छन्द शास्त्र का ऐसा कोई प्रामाणिक ग्रन्थ नहीं है जिसमें स्तोत्र की रचना के बाद जैन समाज के छन्द शास्त्र का ग्रन्थाभाव समाप्त हो गया है। इस कथन में जरा सी भी अतिशयोक्ति नही है कि यह ऐसी अनमोल धरोहर है कि यह वृत्तरत्नाकरादि छन्द शास्त्र के ग्रन्थों को बहुत पीछे छोड़ देती है। वृत्त रत्नाकरादि में वह सुबोधता कहां जो इस कल्याण कल्पतरू स्तोत्र में है। छन्द शास्त्र का सम्पूर्ण परिचय प्राप्त करने वालों के लिए यह ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी है। केवल जैनो के लिए ही नहीं प्रत्युत जैनेतर छन्द शास्त्र के जिज्ञासुओं के लिए भी यह ग्रन्थ छन्द शास्त्र विषयकसमग्र ज्ञातव्य सामग्री से परिपूर्ण है। अन्त में आर्यिका रत्न माता ज्ञानमती जी के प्रति न केवल अपनी ओर से प्रत्युत सम्पूर्ण जैन समाज की ओर से कृतज्ञता विज्ञापित करता हूँ जो कि अहर्निश ज्ञानाराधन के द्वारा विद्यादेवी की सेवा करने के साथ-साथ तपस्विनी साध्वी के रूपमें जन-जन को सन्मार्ग की प्रेरणा प्रदान कर रही है। यद्यपि ग्रन्थ की छन्द सामग्री बहुत सुरस्य एवं छन्द शास्त्र का सर्वाडग ज्ञान प्रदान करने वाली है। तथापि ध्यातव्य है कि ग्रन्थ के छन्द वैभव को देख कर पाठक यह न भूल जाए कि यह मूलतः स्तोत्र ग्रन्थ है। जिनेन्द्र देवों की भक्ति तथा आत्म-तन्मयता ग्रन्थ रचना का प्रमुख लक्ष्य है| 00

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