Book Title: Anekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 100
________________ अनेकान्त/21 ग्रन्थ के अन्त में छन्द विज्ञान प्रकरण में छन्दों का विस्तार के साथ परिचय कराया गया है। __ छन्द विज्ञान की भूमिका में सर्वप्रथम महापुराण के वाड्मय के लक्षण को उद्धृत किया गया है पद विद्या मधिच्छन्दो विचितिं वागलंकृतिम् । त्रयो समुदितामेतां तद्विदो वाडमयं विदृः।। तदा स्वायं भुवं नाम पद शास्त्रमभून्महत्। यत्तत्परशताध्वार्य रति गम्भीर मब्धिवत्।। छन्दो विचितिमप्येवं नाना ध्यायै रूपादिशत्। उक्तात्युक्तादि भेदांश्च षडविंशति मदोदृशत्।। प्रस्तारं नष्ट मुदिद्रष्टमेक द्वित्रिलघु क्रियाम्। संख्या मथाध्वयाम ब्याहारगिरांपतिः।। अर्थात वाडमय के जानने वाले गणधरादि देव व्याकरण शास्त्र, छन्द शास्त्र और अलंकार शास्त्र इन तीनो को वाडमय कहते है । उस समय भगवान् ऋषभदेव का बनाया हुआ एक बडा भारी व्याकरण शास्त्र प्रसिद्ध हुआ। उसमें सौ से अधिक अध्याय थे और वह समुद्र के समान अत्यन्त गम्भीर था। इस प्रकार उन्होंने अनेक अध्यायो में छन्द शास्त्र का उपदेश दिया था। भगवान् प्रस्तार नष्ट, उदिदृष्ट एक द्विवत्रि लघु किया, संख्या और अधायोग छन्द शास्त्र के इन छ प्रत्ययों का भी निरूपण किया गया था। जैनाचार्यों ने यद्यपि छन्द शास्त्र पर पर्याप्त ग्रन्थ लिखे परन्तु वर्तमान में कोई लिखित ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। उस कमी को पूरा करने के लिए माताजी ने इस स्तोत्र ग्रन्थ में वृत्तरत्नाकारादि ग्रन्थों का आधार ग्रहण कर इस कल्याण कल्पतरू स्तोत्र की रचना की है। इस छन्द विज्ञान प्रकरण में उन्होने छन्द शास्त्र के आवश्यक नियमो पर विस्तार से प्रकाश डाला है। आठ गणों का सूत्र, गुरु लघु आदि का लक्षण, क्रम संज्ञा यति, छन्द शास्त्र के पारिभाषिक शब्द आदि को अत्यन्त सरल शब्दो मे समझाया गया है। काव्य रचना के नियम, वर्णो का शुभाशुभ भाव, गणो के देवता और उनका फल, पदारम्य में त्याज्य वर्ण, काव्यके प्रारम्भ में स्वर वर्णो के प्रयोग का फल, काव्य के आदि में व्यंजनों के प्रयोग का फल गणों के प्रयोग और उनका फलादेश आदि विषय जो कि बडे-बडे विद्वान भी नहीं जानते हैं, पर माताजी ने बहुत सुन्दर ढंग से परिचयात्मक प्रकाश डाला है। ___छन्दो ने विज्ञान प्रकरण के ही अन्तर्गत काव्य के भेद, उनके रचना करने की विधि, काव्यारम्भ का नियम, छन्द के भेद, वर्णिक छन्दों के सम विषम आदि के भेद तथा उनके लक्षण, दण्डक छन्दों के भेद, समवृत्त छन्दों के भेद आदि छन्द शास्त्र के ज्ञातव्य विषयों को भली भॉति समझाया गया है। समवृत्त छन्दों के नामों को गणना करने के बाद दण्डक छन्दों का उनके भेद एवं लक्षण के साथ विवेचन

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