Book Title: Anekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 108
________________ अनेकान्त/29 जा रायादिणियत्ती मणस्स जाणीहि तमणोगुत्ती। अलियादिणियत्तिं वा मोणं वा होइ वचिगुत्ती।। नियमसार-69 नियमसार की उक्त गाथा मूलाचार और भगवती आराधना में यथावत् प्राप्त होती है। यहाँ दोनों मूलरूप मे प्रस्तुत है-- जा रायादिणियत्ती मणस्स जाणाहि तं मणोगुत्ती। अलियादिणियत्ती वा मोणं वा होइ वचिगुत्ती।। मूलाचार-5/135 जा रागदिणियत्ती मणस्स जाणाहि तं मणोगुत्तिं । अलियादिणियत्ती वा मोणं वा होई वचिगुत्ती।। भगवती आराधना-1181 कायकिरियाणियत्ती काउस्सग्गो सरीरगे गुत्ती। हिंसाइणियत्ती वासरीरगुत्तित्ति णिद्दिट्ठा।। नियमसार-70 __यह गाथा मूलाचार एव भगवती आराधना मे किचित् शब्द परिवर्तन के साथ उपलब्ध है। यथा-- कायकिरियाणियत्ती काउस्सग्गो सरीरगे गुत्ती। हिंसादिणियत्ती वा सरीरगुत्ति हवदि एसा ।। मूलाचार-5/136 कायकिरियाणियत्ती काउस्सग्गो सरीरगे गुत्ती। हिंसादिणियत्ती वा सरीरगुत्ति हवदि दिहा।। भगवती आराधना-1182, पृ 597 ममत्तिं परिवज्जामि णिम्ममत्तिं उवविदो। आलंवणं च मे आदा अवसेस च वोसरे ।। नियमसार-99 नियमसार की उक्त गाथा कुन्दकुन्द के ही भावपाहुड में यथावत् रूप में उपलब्ध है। यथा-- ममत्तिं परिवज्जामि णिम्मत्तिमुवट्टिदो। आलंवणं च में आदा अवसेसाई बोसरे।। भावपाहुड-57 प्रवचनसार मे नियमसार की गाथाका पूर्वार्ध ज्यो की त्यो मौजूद है यथातम्हा तह जाणित्ता अप्पाणं जाणगं सभावेण। परिवज्जामि ममत्तिं उवट्टिदो णिम्ममत्तम्मि।। प्रवचनसार-2/108 मूलाचार मे यह गाथा यथावत् प्राप्त है। यथा -- ममत्तिं परिवज्जामि णिम्मत्तिमुवट्टिदो। आलंवणंव मे आदा अवसेसाई वोसरे।। मूलाचार-2/9 आउरपच्चक्खाण तथा महापच्चक्खाण में उक्त गाथा किचित् भाषागत परिवर्तन के साथ उपलब्ध है। यथा-- ममत्तं परिवज्जमि निम्मयत्ते उवडिओं आलवणं च में आया अवसेसं च वासिरे।। वीरभद्र, आउरपच्चक्खाण महापच्चक्खाण में भी देखिए - ममत्तं परिजाणिमि निम्मत्ते उवढिओ। आलंवणं च में आया अवसेसं च वोसिरे।। महापच्चक्खाण-7/10/1450

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