Book Title: Anekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 116
________________ इसी महामन्त्र से उद्भूत हैं। चतुर्विंशति तीर्थंकरोंके नामाक्षर, यक्ष यक्षणियों के नामाक्षर इसी मन्त्र में समाहित हैं। ज्ञानार्णव में एकाक्षर से आरम्भ कर षोडशाक्षर मन्त्रों के निर्माण इस महामन्त्र अक्षरों पर अवलम्बित हैं, कहा गया हैस्मर पञ्चपदोद्भूतां महाविद्यां जगन्नुताम् । गुरुपञ्चक नामोत्थां षोडशाक्षर राजिताम् ।। प्रवचनसारोद्वार वृत्ति मे लिखा है कि णमोकार मन्त्र सम्पूर्ण मन्त्ररत्नों की उत्पत्ति के लिए रत्नाकर सर्वकल्पित पदार्थों की प्राप्ति हेतु कल्पद्रुम, विषधर शाकनी, डाकिनी याकिनी आदि निग्रह हेतु समर्थ विषवत्, सम्पूर्ण जगत् के वंशीकरण आकर्षण आदि हेतु अव्यभिचारी समर्थ कारण तथा चतुर्दश पूर्वों में सारभूत है। इसी प्रकार जिनकीर्ति सूरि ने भी यही भाव उद्धृत किये है। संक्षेप में णमोकारमन्त्र सर्व मन्त्रों में शिरोमणिभूत अति-महिमावान्, मन्त्रजनक के रूप साहित्य में आहूत है तथा एकल दुख का अमोद्य अस्त्र है । सर्वमन्त्र रत्नानामुत्पत्त्याकरस्य प्रथमस्य कल्पित पदार्थ करर्णक कल्पद्रुमस्य विषविष धरशाकिनी डाकिनी याकिन्गादि निग्रह निखग्रह स्वभावस्य सकलजगद्वशीकरण कृष्ट्यादि अव्यभिचार प्रौढप्रभावस्य चतुर्दशपूर्वाणा सारभूतस्य, पञ्चपरमेष्ठीनमस्कारस्य महिमाऽतयद्भुतं वरीवृतत्रे ।।

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