Book Title: Anekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 110
________________ अनेकान्त/31 चंदोवेज्इयं में भी देखिएएगो जीवों चयइ, एगो उव्वज्जए सम्मेहिं।। एगस्स होई मरणं एगो सिज्झइ नीरजो।। चंदादेज्झय 3/161/649 फुटनोट । उक्त गाथा भाषा एव शब्द परिवर्तन के साथ आउरपच्चक्खाण (2) मे उपलब्ध है, किन्तु भावसाम्य तो है ही। यथा एक्को जायइ जीवो मरई उप्पज्जए तहा एक्को। संसारे भमइ एक्को एक्को च्चिय पावई सिद्धिं ।। आउरपच्चकखाण (2) 13/29/2607 एगो में सासदों अप्पा णाणदसंणलक्षणो। सेसा में बाहिरा भावा सब्बे संजोगलक्खणा।। नियमसार-102 नियमसार की यह गाथा भावपाहुड, मूलाचार, महापच्चक्खाय, चदावेज्झयं, आराहणापयरण, आउरपच्चक्खाण (1) तथा वीरभद्र के आउरपच्चक्खाण मे पायी जाती है। यथा-- एगो मे सस्सदो अप्पा णाणदंसणलक्खणो। सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा।। भावपाहुड-59 एओ मे सस्सओ अप्पा णाणदंसणलक्खणो। सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा।। मूलाचार-2/12(48) एक्को मे सासओ अप्पा नाणदंसणलक्खणो। सेसा मे बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा।। महापच्चक्खाण-7/16/1456 एगो मे सासओ अप्पा नाणदंसणसजुओ। सेसा में बाहिरा भावा सव्वे संजोगलक्खणा।। चंदोवेज्झय-3/160/6481 आराहणापयरण-5/67/2586। आउरपच्चक्खाण (1)-6/29/1439 | वीरभद्रआउरपच्च-6 16/27/2836 जं किंचि मे दुच्चरित्त सव्वं तिविहेण वोसरे। सामाइयं तु तिविहं करेमि सव्वं णिराकारं ।। नियमसार-103 उक्त गाथा मूलाचार, वीरभद्र के आउरपच्चक्खाण, महापच्क्खाण तथा मरण विभक्ति मे उपल्बध होती है। ग्रन्थान्तरों का मूल पाठ निम्न प्रकार है जं किंचि में दुच्चरियं सव्वं तिविहेण वोसरे। सामाइयं च तिविहं करेमि सव्वं णिरायारं।। मूलाचार-2/3 जं किंचि व दुच्चरियं तं सव्वं वोसिरामि तिविहेणं। सामाइयं च तिविहं करेमि सव्वं निरागारं ।। __ वीरभद्र/आरउरपच्क्खाण-16/19/2831 जं किंचि वि दुच्चरियं तमहं निंदामि सव्वभावेणं । सामाइयं च तिविहं करेमि सव्वं निरागारं।। महापच्चक्खाण-7-3/1443 जं किंचि वि दुच्चरियं तमहं निंदामि सव्वभावेणं। सामाइयं च मितिबिहं तिविहेण करेम ऽणागारं।। मरणविभक्तति-5/211/960

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