Book Title: Anekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 106
________________ अनेकान्त/27 ग्रन्थान्तरों में नियमसार की गाथाएं __- डा ऋषभचन्द्र जैन “फौजदार" “नियमसार* 187 गाथाओं में निबद्ध आचार्य कुन्दकुन्द की प्रमुख रचना है। इसकी भाषा जैन शौरसेनी प्राकृत है। इसमे श्रमण की आचार सहिता वर्णित है। दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनो परम्पराओ मे कुन्दकुन्द को समान आदर प्राप्त है। दोनों परम्परा के ग्रन्थो मे कुन्दकुन्द की गाथाएँ पर्याप्त मात्रा में पायी जाती है। सभव है ऐसी गाथाएँ कुन्दकुन्द से भी प्राचीन हो, जिन्हे कुन्दकुन्द सहित अनेक ग्रन्थकारो ने अपने ग्रन्थों का अंग बनाया हो। नियमसार की कतिपय गाथाएँ स्वयं कुन्दकुन्द के प्रवचनसार, समयसार, पचास्तिकाय एवं भावपाहुड, मे प्राप्त होती है। जैन शौरसेनी के ही मूलाचार, भगवती आराधना, गोम्मटसार जीवकाण्ड प्रभृति ग्रन्थो मे भी पायी जाती है। अर्धमागधी के आवश्यक नियुक्ति, महापच्चकखाण प्रकीर्णक, आउरपच्चखाणप्रकीटक (1), आउरपच्चक्खाण प्रकीर्णक (2) वीरभद्र कृत आउरपच्चक्खाण प्रकीर्णक, चदावेज्झय प्रकीर्णक, तित्थेगाली प्रकीणक, आराधना पयरण, आराहणा पाडया (1) आराहणापडाया (2) एव मरणविभक्ति आदि ग्रन्थो मे नियमसार की गाथाए उपलब्ध होती हैं । इन ग्रन्थो में प्राप्त गाथाओ में केवल भाषाई परिवर्तन दृष्टिगोचर होते है। नियमसार की सर्वाधिक 22 गाथाए मूलाचार मे मिलती है। नियमसार की ऐसी गाथाएँ यहाँ प्रस्तुत है मग्गो मग्गफलं ति य दुविहं जिणसासणे समक्खादं । मग्गो मोक्खउवायो तस्स फलं होई णिव्वाणं।। नियमसार-2 नियमसार की उक्त गाथा संख्या-2 की तुलना मूलाचार की निम्न गाथा से कीजिये मग्गो मग्गफलं तिय दुविहं जिणसासणे समक्खादं। मग्गो खलु सम्मत्तं मग्गफलं होइ णिव्वाणं ।। मूलाचार-5/5 यहॉ उक्त गाथा का पूर्वार्ध यथावत् है, किन्तु उत्तरार्ध मे नियमसार के मग्गो मोक्खउवायो के स्थान पर मूलाचार मे “मग्गो खलु सम्मत्त" कहा गया है। अइथूलथूल थूलं थूलंसुहुमं च सुहुमथूलं च। सुहम अइसुहुम इदि धरादियं होदि छम्भेयं ।। नियम--21 यह गाथा गोम्मटसार जीवकाण्ड मे शब्द परिवर्तन के साथ उपलब्ध होती है, किन्तु उसमें भाव साम्य पूर्ण रूप से पाया जाता है । वह गाथा मूलरूप में इस प्रकार

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