Book Title: Anekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 81
________________ द्रव्यदृष्टि स्थायी पर्याय दृष्टि क्षणिक जैनधर्म अनादि प्रकृति के स्वभाव का अवलम्बी होने से अनादि है। इसके सिद्धान्त वस्तु-स्वभाव का उसी मूलरूप में वर्णन करते है जिसमें वस्तु स्वय विद्यमान रहती है। परिवर्तन के सम्बन्ध में इसका अकाट्य सिद्धान्त 'उत्पाद व्यय ध्रौव्य युक्तं सत्' और 'सद्रव्यलक्षणम्' के रूप मे निर्दिष्ट है- वस्तु में प्रत्येक क्षण उतपाद-व्यय और ध्रुव त्व रहते है और इसी हेतु वस्तु के परिवर्तन में भी उसे नित्य कहा जाताहै। वस्तु निज स्वभाव में रहने से नित्य और पर्याय मे परिवर्तन की अपेक्षा अनित्य है । यद्यपि लोगो को यह बात कुछ अटपटी सी लगेगी कि वस्तु नित्यानित्य उभय रूप, और वह भी एक समय में है ऐसा कैसे हो सकता है? पर इसमे आश्चर्य नहीं कि जिसने 'अनेकान्त' के सिद्धान्त को समझा है उसकी दृष्टि मे वस्तु स्थिति स्पष्ट है- वह कथचित् नित्य भी है और कथंचित् अनित्य भी है। मात्र पर्यायदृष्टि वाला अपना अहित करता है और द्रव्यदृष्टि वाला हित की ओर जाता है। द्रव्य दृष्टि वाला जानता है कि पर्याय अनित्य है उसमें उलझे रहने मात्र से अनित्यता-नश्वरता ही होगी और उससे प्रयोजन सिद्ध होने वाला नही, मात्र पछतावा ही रह जायगा। स्वामी समन्तभद्र प्रसिद्ध दार्शनिक हुए है। उन्हो ने पर्यायबुद्धि वालो की दशा का सुन्दर विवेचन किया है। देखें घट-मौलि-सुवर्णार्थी नाशोत्पाद स्थिति ष्वयम् शोक प्रमोद माध्यस्थ जनो याति सहेतुकम्।।' तीन व्यक्ति भिन्न-भिन्न उद्देश्यों को लेकर दरबार में पहुंचे । प्रथम घट प्राप्ति की चाहना को लेकर, दूसरा घट-खण्डों की चाहना को लेकर और तीसरा सुवर्ण प्राप्ति की चाहना को लेकर । दरबार में प्रवेश करना था कि घट गिर पड़ा और टुकडे हो गए। बस, क्या था? घटार्थी खेद खिन्न हुआ क्योंकि अब उसे घट नहीं मिल सकेगा। घट खण्ड पाने वाला खुश हो गया उसका काम बन जाएगा। परन्तु सुवर्ण (द्रव्य) चाहने वाला साम्यभाव में रहा। इनमें प्रथम दो पर्याय दृष्टि थे जो क्षणिक दुख और सुख के भागी बने और तीसरा द्रव्य दृष्टि था। स्मरण रहे द्रव्य का कभी नाश नहीं होता और पर्याय विनश जाती है। हमे स्थायी को देखना है और उसी में रहने में सुख है । स्थायित्व वस्तु का स्वभाव है, उसी की प्राप्ति हमारा लक्ष्य है। स्थायित्व में उत्पाद-व्यय उसका स्वयं का स्वभाव है।

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