________________
अनेकान्त/3
चाणक्य और जैन परम्परा
__ --डॉ गोकुल प्रसाद जैन जब अक्टुबर, 326 ईसा पूर्व मे सिकन्दर पजाब से वापिस हुआ, उस समय मगध में नन्दराजा राज्य कर रहा था। इसके लगभग एक मास बाद नवम्बर 326 ईसा पूर्व में चाणक्य के सहयोग से चन्द्रगुप्त मगध का शासक बना।
चन्द्रगुप्त मौर्यवशी क्षत्रिय था। जैन शास्त्रो के अनुसार, तीर्थकर महावीर से पूर्व “मौर्याख्य" नाम का एक राज्य (राजधानी-पिप्पलोपन) पूर्व भारत मे विद्यमान था जिसका समर्थन हेमचन्द्राचार्य और बौद्धग्रथ “महावश” से भी होता है । मौर्याख्य राज्य के क्षत्रिय जैन धर्मानुयायी थे और उस राज्य का एक क्षत्रिय पुत्र (मौर्य पुत्र) महावीर का गणधर भी था । एक मौर्य क्षत्रिय सम्राट महापद्म नन्द का सेनापति भी था। चन्द्रगुप्त मौयाख्य राज्य का क्षत्रियपुत्र होने के कारण ही मौर्य कहलाया।
चाणक्य की सहायता से नन्दवश का राज्य समाप्त कर चन्द्रगुप्त का 25 वर्ष की आयु मे राज्याभिषेक हुआ। नन्दवश भी जैन धर्म का अनुयायी था और मौर्य साम्राज्य मे भी जैन धर्म को राज्याश्रय प्राप्त हुआ ! मौर्यवश निरन्तर जैन धर्म के प्रति निष्ठावान् रहा तथा चन्द्रगुप्त मौर्य श्रृखलावद्ध ऐतिहासिक युग का प्रथम सम्राट बना। उसका साम्राज्य दक्षिण भारत तक फैला हुआ था।
चाणक्य ने नन्दवश के विनाश और मौर्य राज्य की स्थापना मे सभी क्षेत्रो मे पूर्ण सक्रिय और रचनात्मक योगदान किया था। वह उस युग का इतिहास पुरुष था जिसे युगस्रष्टा और युगदृष्टा होने का भी गौरव प्राप्त है। अपने गुरु चाणक्य के प्रभाव के कारण ही चन्द्रगुप्त जीवन भर एक आदर्श, श्रमणनिष्ठ और धर्मात्मा सम्राट रहा और अन्तमे श्रवणवेलगोल (जिला हासन कर्णाटक) से समाधिपूर्वक स्वर्गस्थ हुआ। __ चाणक्य को विष्णुगुप्त, चाणावत, द्रोमिल, द्रोडिण, अंशुल, कौटिल्य आदि अनेक नामो से सबोधित किया जाता है। गोल्ल नामक ग्राम मे 'चणक' नामक एक जैन-ब्राह्मण रहता था जिसकी भार्या चणेश्वरी थी। उन्ही का पुत्र चाणक्य उनके समान ही श्रमणोपासक श्रावक' था।
इसी प्रकार, हरिषेण कथा कोष में था। ब्र नेमिदत्त कृत अराधना कथा कोष (भाग 3, पृष्ठ 46) मे चाणक्य के पिता का नाम कपिल और माता का नाम देविला लिखा है। वे वेद पारगत विद्वान् थे। महीधर नामक जैन मुनि से उन्होने जैन दीक्षा ग्रहण की थी।
बौद्ध ग्रथ महावश के टीकाकार ने लिखा है कि चाणक्य तक्षशिला का निवासी था और वेद शास्त्र का पारगत था, मत्र विद्या मे निष्णात था और नीतिशास्त्र का आचार्य था । वह अप्रतिम कूटनीतिज्ञ और राजनीति विशारद था तथा मौर्य साम्राज्य का मूल सस्थापक, उसका उद्धारक, विस्तारक, कुशल प्रशासक और महान सेना
१. आचार्य हेमचन्द्र कृत परिशिष्ट पर्व (पृष्ठ ७७), श्लोक स २००, २०१ आदि।