Book Title: Anekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 60
________________ अनेकान्त/22 "संवत् 1203 आषाढ वदी 3 शुक्रे श्रीवर्द्धमानस्वामि प्रतिष्ठापिकः गृहपत्यन्वये साहु श्री उल्कणद्य अल्हण साहु मातेण वैश्यवालान्वये साहु वासलस्तस्य दुहिता मातिणी साहु श्री महीपती । “संवत् 1207 आषाढ वदी 9 शुक्रे श्रीवीरवर्द्धमानस्वामि प्रतिष्ठापितो गृहपत्यन्वये साहु श्री राल्हर्णश्चतुर्विधदानेन....... पठलित विमुक्त सुख शीतल उलकं प्रवर्द्धित कीर्तिलतावगुण्ठित ब्रह्माण्डं. . तत्सुत श्री आल्हसतथा तत्सुत साहु मातनेन पौरवालान्वये साहु वासलस्तस्य दुहिता मातिणी साहु श्री महीपति तत्सुत साहु... ...तत्सुत सीदू एते नित्यं प्रणमन्ति । मंगलं महाश्री। (देखे प्रस्तुत पुस्तक का पृ. 116-117) वैभवशाली अहार पुस्तक में प्रकाशित प्रो. गौरावाला के लेख के अनुसार इन लेखों में संवत् 1203 क्रमांक तीसरे में गृहपति वंश और उसके साथ वैश्यवाल वंश के साहु वासल तथा उनकी पुत्री मातिणी का उल्लेख और संवत् 1207 क्रमांक चतुर्थ लेख मे गृहपतिवंश के उल्लेख के साथ साहु मातन को पोरवाल अन्वय का लिखा जाना तथा साहुवासल और उनकी पुत्री मातिणी के नामोल्लेखों में नाम साम्य के कारण ऐक्य स्थापित होता है। प्रो गोरावाला का अनुमान है कि गृहपतिवंश उस वर्तमान जाति (वंश) का नाम था, जिसमें कोच्छल्ल गोत्र आज भी है। प्रो. गोरावाला ने जिन लेखो के परिप्रेक्ष्य में यह अभिमत प्रकट किया है वे पूर्वोल्लिखित प्रतिमालेख पं. गोविन्ददास "कोठिया द्वारा संग्रहित और श्रीमान् सेठ हीरालाल, दीपचन्द, अनंदीलाल जैन हटा (टीकमगढ) मप्र द्वारा प्रकाशित प्राचीन शिलालेख श्री 108 दि. जैन अतिशय क्षेत्र अहारजी टीकमगढ़ से लिये गये प्रतीत होते हैं। इस पुस्तक में ये लेख क्रमशः क्रमांक 87. 89, 51 और 102 से प्रकाशित हुए हैं। इन लेखों में पूर्ण विराम को ओर ध्यान नहीं दिया गया है। प्रो गोरावाला ने अपना अभिमत चतुर्थ प्रतिमालेख को लेकर स्थापित किया है। प्रस्तुत लेख में प्रणमन्ति और महाश्री के बाद पूर्ण विराम दर्शाये गये हैं जबकि स्थिति इससे भिन्न है। इस लेख के मूलपाठ के पाँच स्थलों पर खड़ी रेखाओं द्वारा पूर्ण विराम चिन्ह दिये गये हैं जो एक तथ्य के पूर्ण होने का संकेत करते हैं। प्रथम पूर्ण विराम चतुर्विधदाने के पश्चात् है। इसके बाद मातनेन के पश्चात् इस लेख के मूलपाठ में पूर्ण विराम सूचक दो खडी रेखाएँ हैं। तीसरा पूर्ण विराम मातिर्णि के बाद में है। चतुर्थ पूर्ण विराम प्रणमंति के पश्चात् और पाँचवां इति के बाद। मातन गृहपत्यन्वयी है। प्राचीन शिलालेख अहार ले.सं. 66 और लेख सं 9 में भी स्पष्ट रूप से मातन को गृहत्यन्वय का होना कहा गया है। मातिणी पौरपाटान्वय के साहु वासल को दुहिता थी। गृहपत्यन्वय और पौरपाटान्वय दोनों अन्वयों के श्रावकों ने मिलकर इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा कराई थी। प्रो. गोरावाला को यह सन्देह संभवतः

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