Book Title: Anekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 58
________________ अनेकान्त/20 उनसे पुस्तक के विभिन्न अंगों पर गहराई से उहापोह किया है। षष्ठ खण्ड (सरस्वती साधक) में सरस्वती के उन उपासकों का परिचय दिया गयाहै। जिन्होंने परवार जैन समाज को गौरवान्वित किया है। इस खण्ड में ऐसे मनीषियों के नाम भी प्रकाशित हो गये हैं जो परवार जैन नहीं हैं। उदाहरणार्थ पृष्ठ 285 में देखें श्री श्रीयांसकुमार सिंघई का परिचय। इसी प्रकार पृष्ठ संख्या 504 में दृष्टव्य है- सिहोरा निवासी श्री धन्यकुमार जी का परिचय। डॉ. जैन के आत्मीय सहयोग की हम हृदय से सराहना करते हैं। वे साधुवाद के पात्र हैं | परवार जैन समाज की विभूतियों का परिचय लिखकर डॉ जैन ने एक महत्वपूर्ण कार्य किया है। __ आइए एक दृष्टि इतिहास खण्ड पर भी डालें । पुस्तक के द्वितीय खण्ड में अभिलेखादि दिये गये हैं । सर्वाधिक प्रतिमा की आसनपर साढोरा ग्राम के जैनमन्दिर की एक वेदी पर विराजमान प्रतिमा की आसन पर अकित मिला है सवत् 610 का (दे पृ 114) यह ग्राम दिल्ली से गुजरात और महाराष्ट्र आदि प्रदेशो को जाने वाले मार्ग पर गुना जिले में स्थित बताया गया है। दे पृ 28, 42 । इस लेख में मूलसंघ मे पौरपाट अन्वय के पाटनपुर निवासी सघई (सिघई) का उल्लेख हुआ है। लेख निम्न प्रकार है संवत् 610 वर्षे माघ सुदी।। मूलसंघे पौरपाटान्वये पाटलनपुर संघई। इसमे मूलसघ, पौरपाटान्वय और संघई पद प्राचीनता की दृष्टि से विचारणीय है। पाटनपुर से लायी गयी कुछ प्रतिमाए सागर के बडे बाजार स्थित चौधरनबाई दिगम्बर जैन मन्दिर में विराजमान हैं। संभवतः यह प्रतिमा भी पाटन से ही यहाँ किसी प्रकार आयी हो। इसके दो कारण ज्ञात होते हैं- प्रथमपौरपाट अन्वय और दूसरा है संघई पद का होना। इस पुस्तक के लेखक की दृष्टि में यह प्रतिमा पार्श्वनाथ तीर्थंकर की है। पृ 114 में इस प्रतिमा का परिचय पार्श्वनाथ प्रतिमा के नाम से दिया गया है। पृ 506 पर दिए गए इस प्रतिमा चित्र को भी भगवान पार्श्वनाथ का बताया गया है। प्रतिमा के शीर्ष भाग पर पंचफणावलि उत्कीर्ण है। संभवतः इसी फणावली को देखकर लेखक ने इसे पार्श्वनाथ तीर्थंकर की प्रतिमा समझा है। प्रतिमा की आसन पर तीन पंक्ति का लेख है और लेख के मध्य में लांछन स्वरूप स्वास्तिक का स्पष्ट अकन है जिससे यह प्रतिमा सातवे तीर्थकर सुपार्श्वनाथ की प्रमाणित होती है। फणावली पार्श्वनाथ और सुपार्श्वनाथ दोनों तीर्थंकरों के शीर्ष भाग पर होती है। अन्तर स्वरूप सुपार्श्वनाथ के सिर पर पंच फणावली और पार्श्वनाथ के सिर पर सात, नौ, ग्यारह फण दर्शाये जाते है । साढौरा की यह प्रतिमा तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ की है। एक ऐसी ही पच फणावली से युक्त प्रतिमा भारत कला भवन हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में भी प्रदर्शित है। प्रतिमा के शीर्ष भाग पर दुन्दुभिवादक और पीछे भामण्डल है। गुच्छक केश सहित पाल शैली में अंकित यह प्रतिमा राजघाट से प्राप्त बताई गयी है और समय 11 वीं शती दर्शाया गया है।

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