Book Title: Anekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
View full book text
________________
अनेकान्त
वर्ष ४६
अप्रैल-जून
वीर सेवा मंदिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२
वी.नि.सं. २५२२ वि.सं. २०५३
किरण-२
૧૬૬૬
-
गुरु-स्तुति कबधौं मिलैं मोहिं श्रीगुरु मुनिवर, करिहैं भवदधि पारा हो। भोग उदास जोग जिन लीनों, छाड़ि परिग्रह भारा हो। इन्द्रिय-दमन वमन मद कीनों, विषय-कषाय निवारा हो।।
कंचन-कांच बराबर जिनके, निंदक वंदक सारा हो। दुर्धर तप तपि सम्यक् निज घर, मनवच तन कर धारा हो।।
ग्रीषम गिरि हिम सरिता तीरें, पावस तरुतर ठारा हो। करुणा लीन, चीन वस थावर, ईर्यापंथ समारा हो।।
मार मार, व्रतधार शील दृढ़, मोह महामल टारा हो। मास छमास उपास, वास वन, प्रासुक करत अहारा हो।।
आरत रौद्र लेश नहिं जिनकें, धरम शुकल चित धारा हो। ध्यानारूढ़ गूढ़ निज आतम, शुध उपयोग विचारा हो।।
आप तरहिं औरन को तारहिं, भवजलसिंधु अपारा हो। "दौलत" ऐसे जैन जतिन को, नित प्रति धोक हमारा हो।।

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118