Book Title: Anekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 37
________________ अनेकान्त/34 ज्ञान-स्वरूपी आत्मा का साक्षात्कार संभव है। दुर्भाग्य से जिसने जो दृष्टि पकड रखी है, उससे वह ऊपर उठना ही नहीं चाहता। किन्तु क्या आग्रह पूर्ण नय/दृष्टियों के बबूल बोकर कोई आम्रफल के रस का पान कर सकता है, विचारणीय है। नयातीत या पक्षातिक्रांत का क्या स्वरूप है इसका वर्णन करते हुये आचार्य कुन्द कुन्द समयसार गाथा 143 में कहते हैं कि नय पक्षों के आग्रह से रहित जीव अपने चित्स्वरूप आत्मा का अनुभव करता हुआ दोनों ही नयों के कथन मात्र जानता है परन्तु नया पक्ष को किंचित मात्र भी ग्रहण नहीं करता। उनके अनुसार जो सर्व नय पक्षों से रहित कहा गया है वह समयसार है और उस समयसार को ही सम्यग्दर्शन और सम्यकज्ञान कहते हैं (स सार गाथा 144) धर्म एवं धार्मिकपने के सार को हृदयंगम कर सभी जन अनेकान्तिक ज्ञान से विकल्पातीत ज्ञान स्वरूप का अनुभव कर समता रस का पान करें और सुखी हों, यही कामना है। जी-5 ओ. पी. मिल्स कालोनी अमलाई 'अनेकान्त' आजीवन सदस्यता शुल्क : 101.00 रू. वार्षिक मूल्य . 6 रु., इस अक का मूल्य : 1 रुपया 50 पैसे यह अंक स्वाध्याय शालाओ एव मदिरो की माग पर निःशुल्क विद्वान लेखक अपने विचारो के लिए स्वतन्त्र है। यह आवश्यक नहीं कि सम्पादक-मण्डल लेखक के विचारों से सहमत हो। पत्र में विज्ञापन एवं समाचार प्रायः नही लिए जाते । सपादन परामर्शदाता : श्री लक्ष्मीचन्द्र जैन, सपादक श्री पदमचन्द्र शास्त्री प्रकाशक : श्री भारत भूषण जैन एडवोकेट, वीर सेवा मदिर, नई दिल्ली-2 मुद्रक : मास्टर प्रिटर्स, नवीन शाहदरा, दिल्ली-32 Regd. with the Ragistrar of Newspaper at R.No. 10591/62

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