Book Title: Anekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 21
________________ अनेकान्त/18 चंद्रगुप्त मोर्य का श्रवणबेलगोल मार्ग __ -राजमल जैन इस विषय पर विचार करने के लिए चंद्रगुप्त के संबंध में प्रचलित धारणाओं एवं उसके श्रवणबेलगोल गमन संबंधी जो कुछ भी तथ्य संभव हो सकते हैं. उन पर विचार करने पर मार्ग स्पष्ट हो सकता हैं। ___नंद राजाओं के विशाल साम्राज्य पर चंद्रगुप्त मौर्य का अधिकार हुआ किंतु इस स्वदेशाभिमानी एवं पराक्रमी सम्राट को भी निम्न उत्पत्ति का सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया है। उसे मुरा नामक दासी का पुत्र बताया गय है किंतु यह कथन करने वाला यह भूल गया कि मुरा से मौर्य शब्द नहीं बनता। वास्तव में प्राकृत "रिअ" के स्थान पर संस्कृत में "र्य" हो जाता है। चंद्रगुप्त मोरिय (अ) जाति का था, इसलिए वह मौर्य कहलाया। विद्वान लेखक इस तथ्य को पहिचान गए हैं। दक्षिण भारतीय इतिहास के प्रसिद्ध विद्वान श्री नीलकंठ शास्त्री का कथन है, :Nain tradition regards Chandragupta as the son of a daughter of the chief of a village of peacock breeders (Mauriya Poshaka). It may be noted that the peacock figures as the emblem of the Mauryas in some punch marked coins and sculptures." पाठक स्वयं ही विचार कर सकते हैं कि सिक्के ओर मूर्तिया झूठ नहीं बोलते। प्रायः सभी इतिहासकार इस बात से सहमत है कि कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल मे जैनधर्म का प्रवेश चंद्रगुप्त मौर्य के श्रवणबेलगोल आगमन के समय ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में हुआ। कितु इस बात पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए कि क्या भद्रबाहु और चंद्रगुप्त ऐसे प्रदेश मे बारह हजार मुनियों के साथ चले आए जहा जैनधर्म के मानने वाले पहले से नही थे। सामान्य जन भी यदि कही बाहर बसने की सोचते हैं, तो सबसे पहले भाषा, भोजन आदि की सुविधा का विचार करके ही कदम उठाते हैं। परंपरा है कि चंद्रगुप्त मुनि रूप में श्रवणबेलगोले पहुंचे थे। जैन मुनियों के आहार की एक विशेष विधि होती है। वे अतिथि होते हैं । वे 46 दोषों से रहित तथा बिना अंतराय के दोनों हाथों की अंजुलि से बने पाणिपात्र में खडे-खडे ही दिन में केवल एक ही बार केवल 32 ग्रास के बराबर भोजन करते हैं। धुआं, किसी का रुदन या बाल आदि का आ जाना इत्यादि

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