Book Title: Anekant 1996 Book 49 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 25
________________ अनेकान्त/22 केन्द्रीय संग्रहालय गूजरी महल ग्वालियर में संरक्षित जैन यक्ष-यक्षी प्रतिमाएँ ___ -नरेश कुमार पाठक शासन देवता समूह में चौबीस यक्षों और उतनी ही यक्षियों की गणना है। ये यक्ष और यक्षी तीर्थकरों के रक्षक कहे गये हैं। तीर्थंकर प्रतिमाओं के दायें ओर यक्ष और बायें ओर एक यक्षी की प्रतिमाएं बनाये जाने का विधान है। पश्चात-काल में स्वतंत्र रूप से भी यक्ष-यक्षियों की प्रतिमाएं बनाई जाने लगी थी। यद्यपि तांत्रिक युग के प्रभाव से विवश होकर जैनों को इन देवों की कल्पना करनी पड़ी थी। किन्तु इन्हें जैन परम्परा में सेवक या रक्षक का ही दर्जा मिला है न कि उपास्य देव का । यक्ष-यक्षियों की प्रतिमाएं सर्वाग सुन्दर सभी प्रकार के अलंकारों से युक्त बनाने का विधान है। करण्ड मुकुट और पत्र कुण्डल धारण किये प्रायः ललितासन में बनायी जाती है। केन्द्रीय संग्रहालय गूजरी महल ग्वालियर में प्रथम तीर्थकर आदिनाथ एव बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के यक्ष-यक्षियों की चार प्रतिमाएं संरक्षित हैं। जिनका विवरण निम्नलिखित है । गोमुख यक्ष : प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ के शासन देवता की गंधावल जिला देवास मध्य प्रदेश से प्राप्त गोमुख यक्ष का मुख पशुआकार (गोवक्त्रक) और शरीर मानव का है। (स क्र. 230) अप सव्य ललितासन में बैठे हुए शासन देव की दायीं नीचे की भुजा भग्न है। दायीं ऊपरी भुजा में गदा, बायीं ऊपरी भुजा में परशु नीचे की में बीजपूरक लिये है। यक्ष आकर्षक करण मुकुट, मुक्तावली उरुबन्ध, केयूर, बलय मेखला से सुसज्जित है। कलात्मक अभिव्यक्ति 11 वीं शती ईस्वी की परमार युगीन शिल्पकला के अनुरूप है। ___ चक्रेश्वरी : प्रथम तीर्थकर ऋषभनाथ की शासन यक्षी चक्रेश्वरी की ग्वालियर दुर्ग से प्राप्त मानव रूपी गरुड पर सवार है, सिर एवं ऊपर के दो हाथ खण्डित हैं। (स.क्र. 305) नीचे के दो हाथ आंशिक रूप से सुरक्षित हैं। दोनों ओर दो चक्र बने हुये हैं, यक्षी एकावली, हार, उरुबन्ध, केयूर,बलय, मेखला पहने हुये है एवं पैरों में अधोवस्त्र धारण किये है। गरुड़ के सिर पर आकर्षक दोनों पार्श्व में त्रिभंग मुद्रा में परिचारिका चावरधारिणी सुशोभित है वे दायें हाथ में चॅवर लिये है, बायां हाथ कट्यावलम्बित है। दोनों पार्श्व में अंजलीहस्त मुद्रा में भू देवी और श्री देवी का आलेखन है। 10 वीं शती ईस्वी की प्रतिमा काफी भग्न अवस्था में है। कलात्मक

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