Book Title: Anekant 1995 Book 48 Ank 01 to 04 Author(s): Padmachandra Shastri Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 7
________________ अनेकान्त/२ वैयाकरण हैमचन्द्र और 'अरहंताणं' पद सोअ-वसारोत्तूणवि रोत्तुमणा विम्हरन्ति रोत्तत्वं । दठूण जाण मुत्तिं, अरहन्ताणं नमो ताणं ।।५२।। जे दट्टव्वे दटुं, इन्दो काहीअ लोअण-सहृस्म । दंसण तत्तिं काउं, अरहन्ताणं नमो ताणं ।।५३।। काऊण कायव्वं कम्मं काहिन्ति जे ण पुणरुत्तं । जगवोहम इच्छिराणं, अरहन्ताणं नमो ताण ।।५४।। जो अणुगच्छइ जच्छइ, छिदिउं अच्छइ तणं च । तेसिंपि अणभिदिअ-भावाण, अरहन्ताणं नमो ताण ।। ५५|| सविहे न जाण कुज्झइ, जुज्झइ मुज्झइ भवे अगिज्झंतो। देही वुज्झइ सिज्झइ, अरहन्ताणं नमो ताण ।।५६।। - रुधिअ-करणं, रंभिअ-पवणं, रुज्झिअमणं अपडिएहिं । झाइव्वाण मुणीहिं, अरहन्ताणं नमो ताण ।।५७।। सडिअ-रया, कढिअमला वड्डिअ तव-तेअ-वेढिअंगा य । जाणज्जवि वर-मुणिणो, अरहन्ताणं नमो ताणं ।।५८।। - दुक्कड-संविल्लि अओ भवपासोव्वेढणोजओ लोओ । उद्वेल्लिज्जइ जे हिं, अरहन्ताणं नमो ताणं ।।५९।। -कुमारपालचरित ७/५२-५९।।Page Navigation
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