Book Title: Agamdharsuri
Author(s): Kshamasagar
Publisher: Jain Pustak Prakashak Samstha

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Page 8
________________ भूमिका उद्देश्य, रहस्य, रूपरेखादि व्यक्त करनेवाली भूमिका. प्रथ की झाकी है तथा परंपरा से सभी लघु-गुरु ग्रंथों में होती है । तिहासिक, भौगोलिक, वैज्ञानिक, नैवधिक, जीवनचरित्र, उपन्यास नाटक आदि तथा वैद्यकीय, ज्योतिषिक, नैतिक या धार्मिक-किसी भी प्रकार के प्रथ पढ़ने से पहले अधिकतर भूमिका पढ़ने से ग्रंथ का विषय-दर्शन होता है । 'श्री आगमधर-मूरि' नामक इस ग्रंथ में पूज्य भागमोद्धारक आचार्य देवश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी महाराज का संक्षिप्त जीवनचरित्र है। इस प्रन्थ को पढ़ने में सहायक हो इस हेतुपूर्वक पूज्य आचार्य देवेशका संक्षिप्त परिचय - पूज्य श्री मन वचन तथा काया के योगत्रय से श्रेष्ठ जैनागम के प्रकाशन में सदा कार्यरत रहते थे। आप योग तथा अयोग (योगायोग) के विवेक में निपुण, गांभीर्य गुणगौरवयुक्त भागमोद्धारक बिरुद धारण करनेवाले थे। मापने इस दुषमकाल में ( कठिनकालमें) स्वयं में महानाद शब्द को सत्य सिद्ध किया है। वर्तमानयुग में अर्धपद्मासनावस्था में निर्वाण प्राप्त करनेवाले परम पूज्य आगमोद्धारक आचार्य देव श्री आनन्दसागरसूरीश्वरजी महाराज इस तरह अपने कार्यों से जगतप्रसिद्ध हैं, फिर भी आपका परिचय दिया जा रहा है। आप जैन वाङमयका उत्कर्ष साधने में तथा सिद्ध करने में अविरत कार्य प्रवृत्त रहते थे। उसी तरह पूर्वाचार्यों की प्रौदकृति का पठन-पाठन तथा संपादन करने में तल्लीन रहते थे। आपने विविध विषयों से संबधित छोटी-बड़ी भनेक कृतियों रची है। आपने जैन

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