Book Title: Agam Suttani Satikam Part 24 Aavashyaka
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 326
________________ उपोद्घातः - [नि.८६८] ३२३ विस्सामिओ साहूहि, तय संभोइया साहू, भिक्खावेलाए भणिओ आणिजउ, भणइ-अत्तलाभिओ अहं, नवरं ठवणकुलाणि साहह, तेहिं से चेल्लओ दिन्नो, सो तं पुरोहियबरं दंसित्ता पडिगओ, इमोवि तत्थेव पइट्टो वडवड्डेणं सद्देणं धम्मलाभेइ, अंतउरिआओ निग्गयाओ हाहाकारं करेंतीओ, सो वड्डवड्डेणं सद्देणं भणइ-किं रूयं साविएत्ति, ते णिग्गया बाहिं बारं बंधंति, पच्छा भणंतिभगवं ! पणच्चसु, सो पडिग्गहं ठवेऊण पणच्चिओ, ते न याणंति वाएउं, भणंति-जुज्झामो, दोवि एक्कसरा ते.आगया, मम्मेहिं आहया, जहा जंताणि तहा खलखलाविआ, तओ निसिट्ट हणिऊण वाराणि उग्घाडित्ता गओ, उज्जाने अच्छति, राइणो कहियं, तेन मग्गाविओ, साहू भणंति-पाहूणओ आगओ, न याणामो, गवसंतेहिं उज्जाने दिट्ठो, राया गओ खामिओ य, नेच्छइ मोत्तुं जइ पव्वयंति तो मुयामि, ताहे पुच्छिया, पडिसुयं, एगत्थ गहाय चालिया जहा सट्ठाणे ठिया संधिणो, लोयं काऊण पव्वाविया, रायपुत्तो सम्मं करेति मम पित्तियत्तोत्ति, पुरोहियसुयो दुगंछइ-अम्हे एएण कवडेण पव्वाविया, दोवि मरिऊण देवलोगं गया, संगारं करेंति-जो पढमं चयइ तेन सो संबोहयव्यो, पुरोहियसुओ चइऊण तीए दुगुंछाए रायगिहे मेईए पोट्टे आगओ, तीसे सिट्ठिणी वयंसिया, सा किह जाया !, सा मंसं विक्किणइ, ताए भण्णइ-मा अन्नत्थ हिंडाहि, अहं सव्वं किणामि, दिवसे २ आनेइ, एवं तासिं पीई घना जाया, तेसिं चेव घरस्स समोसीइयाणि ठियाणि, सा य सेट्टिणी निंदू, ताहे मेईए रहस्सियं चेव तीसे पुत्तो दिन्नो, सेट्टिणीए धूया मइया जाया, सा मेईए गहिया, पच्छा सा सेट्टिणी तं दारगं मेईए पाएसु पाडेति, तुब्अपभावेण जीवउत्ति, तेन से नामं कयं मेयजोत्ति, संवडिओ, कलाओ गाहिओ, संबोहिओ देवेण, न संबुज्झइ, ताहे अट्ठण्हं इब्मकण्णगाणं एगदिवसेण पाणी गेण्हाविओ, सिवियाए नगरिं हिंडइ, देवोवि मेयं अनुपविट्ठोरोइउमारद्धो, जइ ममवि धूया जीवंतिया तीसेवि अज्ज विवाहो कओ होतो, भत्तं च मेताण कयं होतं, ताहे ताए मेईए जहावत्तं सिटुं, तओ रुट्टो देवाणुभावेण य ताओ सिबियाओ पाडिओ तुमं असरिसीओ परिणेसित्ति खड्डाए छूढो, ताहे देवो भणइ-किह ?, सो भणइ-अवण्णो, भणइ-एत्तो मोएहि किंचिकालं, अच्छामि बारस वरिसाणि, तो भणइ-किं करेमि ?, भणइ-रन्नो धूयं दवावेहि, तो सव्वाओ अकिरियाओ ओहाडियाओ भविस्संति, ताहे से छगलओ दिन्नो, सो रयणाणि वोसिरइ, तेन रयणाण थालं भरियं, तेन पिया भणिओ रन्नो धूयं वरेहि, रयणाणं थालं भरेत्ता गओ, किं मग्गसि?,धूयं, निच्छूढो, एवं थालं दिवसे २ गेण्हइ, न य देइ, अभओ भणइ-कओ रयणाणि?, सो भणइ-छगलओ हगइ, अम्हवि दिजउ, आणीओ, मडगगंधाणि वोसिरइ, अभओ भणइदेवानुभावो, किं पुण?, परिक्खिज्जउ, किह ?, भणइ-राया दुक्खं वेब्भारपव्वतं सामि वंदओ जाति, रसमग्गं करेहि, सो कओ, अञ्जवि दीसइ, भणिओ-पागारं सोवण्णं करेहि, कओ, पुणोवि भणिओ-जइ समुदं आनेसि तत्थ ण्हाओ सुद्धो होहिसि तो ते दाहामो, आनीओ, वेलाए ण्हाविओ, विवाहो कओ सिवियाए हिंडतेण, ताओवि से अन्नाओ आणियाओ, एवं भोगे भुजंति वारस वरिसाणि, पच्छा बोहितो, महिलाहिवि बारस वरिसाणि मग्गियाणि, दिन्नाणि य, चउव्वीसाए वासेहिं सव्वाणिवि पव्वइयाणि, नवपुव्वी जाओ, एकल्लविहारपडिमं पडिवण्णो, तत्थेव रायगिहे हिंडइ, सुवण्णकारगिहमागओ, सो य सेणियस्स सोविण्णयाणं www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only

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