Book Title: Agam Suttani Satikam Part 24 Aavashyaka
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 370
________________ अध्ययनं-१ - [नि.९४२] ३६७ चेव आगंतव्व, ताए महिलाए एगो पुव्वेण पेसिओ, एगो अवरेण जो वेस्सो, तस्स पुव्वेण एतस्सवि जंतस्सवि निडाले सूरो, एवं णायं, असद्दहंतेसु पुणोऽवि पट्टविऊण समगं पुरिसा से पेसिया, ते भणंति-ते दढं अपडुगा, एसो मंदसंघयणोत्ति भणियं, तं चेव पवण्णा, पच्छा उवगयं, मंतिस्स उप्पत्तिया बुद्धी । पुत्ते-एगो वणियगो दोहि भज्जाहि समं अन्नरजं गओ, तत्थ मओ, तस्स एगाए भज्जाए पुत्तो, सो विसेसं न जाणइ, एगा भणइ-मम पुत्तो, बिइया भणइ-मम, ववहारो न छिज्जइ, अमच्चो भणइ-दव्वं विरिविऊण दारगं दोभागे करेह करकयेण, माया भणइ-एतीसे पुत्तो मा मारिजउ, दिन्नो तीसे चेव, मंतिस्स उप्पत्तिया बुद्धी ।। महुसित्थे-सित्थगरो, कोलगिणी उब्भामिया, तीए य जालीए निहुवणट्टियाए उवरिं भामरं पडुप्पाइयं, पच्छा भत्तारो किणंतो वारिओ-मा किणिहिसि, अहं ते भामरं दंसेमि, गयाणि जालिं, न दीसइ, तओ तंतुवायपुत्तीए तेनेव विहिणा ठाइऊण दरिसियं, नाया यऽनेन जहा-उब्भामियत्ति, कहमन्नहेयमेवं भवइत्ति, तस्स उप्पत्त्यिा बुद्धी ॥ मुद्दिया-पुरोहिओ निक्खेवए घेत्तूण अन्नेसिं देइ, अनया दमएण ठवियं, पडिआगयस्स न देइ, पिसाओ जाओ, अमच्चो विहीए जाइ, भणइ-देहि भो पुरोहिया ! तं मम सहस्संति, तस्स किवा जाया, रन्नो कहियं, राइणा पुरोहिओ भणिओ-देहि, भणइ-न देमी, न गेण्हामि, रन्ना दमगो सव्वं सपञ्चयं दिवसमुहुत्तठवणपासपरिवत्तिमाइ पुच्छिओ, अनया जूयं रमइ रायाए समं, नाममुद्दागहणं, रायाए अलक्खं गहाय मनुस्सस्स हत्थे दिन्ना, अमुगंमि काले साहस्सो नउलगो दमगेण ठविओ तं देहि, इमं अभिन्नाणं, दिन्नो आनिओ, अन्नेसि नउलगाणं मज्झे कओ, सद्दाविओ, पञ्चभिन्नाओ, पुरोहियस्स जिब्मा छिन्ना, रन्नो उत्पत्तिया बुद्धी । अंकेतहेव एगेण निक्खित्ते लंछेऊण उस्सीवेत्ता कूडरूवगाण भरिओ तहेव सिव्वियं, आगयस्स अल्लिबिओ, सा मुद्दा उग्घाडिया, कूडरूवगा, ववहारो, पुच्छिओ-कित्तियं ?, सहस्सं, गणेऊण गंठी तडिओ, तओ न तीरइ सिव्वेउण, कारणिगाणमुप्पत्तिया बुद्धी ।। नाणए-तहेव निक्खेवओ पणा छूढा, आगयस्स नउलओ दिन्नो, पणे पुच्छा, राउले ववहारो, कालो को आसि ?, अमुगो, अहुणोत्तणा पणा, सो चिराणओ कालो, डंडिओ, कारणिगाणमुप्पत्तिया ॥ भिक्खुंमितहेव निक्खेवओ, सो न देइ, जूतिकरा ओलग्गिया, तेहिं पुच्छिएण य सब्भावो कहिओ, ते रत्तपडवेसेण भिक्खुसगासं गया सुवण्णस्सखोडीओ गहाय, अम्हे वच्चामो चेइयवंदगा, इमं अच्छउ, सो य पुव्वं भणिओ, एयंमि अंतरे आगएणं मग्गियं, तीए लोलयाए दिन्न, अन्नेवियं भिक्खंतगा एताए मंजूसाए कजिहित्ति निग्गया, जूइकाराणमुप्पत्तिया बुद्धी ॥ __ चेडगणिहाणे-दो मित्ता, तेहिं निहाणगं दिटुं, कल्ले सुनक्खत्ते नेहामो, एगेन हरिऊण इंगाला छूढा, वीयदिवसे इंगाला पेच्छइ, सो धुत्तो भणइ-अहो मंदपुन्ना अम्हे किह ता इंगाला जाया ?, तेन नायं,स हिययं न दरिसेइ, तस्स पडिमं करेइ, दो मक्कडे लएइ, तस्स उवरि भत्तं देइ, ते छुहाइया तं पडिमं चडंति । अनया भोयणं सज्जिय दारगोणीया, संगोविया न देइ, भणइमक्कडा जाया, आगओ, तत्थ लेप्पणट्ठाणे ठाविओ, मक्कडगा मुक्का, किलिकिलिंता विलग्गा, भणिओ-एए ते तव पुत्ता, सो भणइ-कहं दारगा मक्कडा भवंति ?, सो भणइ-जहा दिनारा www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only

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