Book Title: Agam Suttani Satikam Part 24 Aavashyaka
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 378
________________ अध्ययनं -१ - [ नि. ९५१] ३७५ पुच्छिओ-किं एसा भणइत्ति, तेन भणियं इमं भणइ इमंसि नदितित्थंमि पुराणियं कलेवरं चिट्ठा, एयरस कडीए सतं पायंकाणं, कुमार ! तुमं गिण्हाहि, तुज्झ पायका मम य कडेवरंति, मुद्दियं पुण न सक्कुणोमित्ति, कुमारस्स कोडुं जायं, ते वंचिय एगागी गओ, तहेव जायं, पायंके घेत्तूण पञ्चागओ, पुणो रडइ, पुणो पुच्छिओ, सो भणइ-चप्फलिगाइयं कहेइ, एसा भणइ-कुमार ! तुविपाकसयं जायं मज्झलि कलेवरंति, कुमारो तुसिणीओ जाओ, अमञ्चपुत्तेण चिंतियं, पेच्छामि से सत्तं किं विणत्तणेण गहियं आउ सोंडीरयाए ?, जइ किवणत्तणेण कयं न एयस्स रज्जूंति नियत्तामि, पच्चसे भणइ - वञ्चह तुमे, मम पुण सूलं कज्जइ न सक्कुणामि गंतुं, कुमारेण भणियं न जुत्तं तुमं मोत्तूणं गंतुं, किं तु मा कोइ एत्थ मे जाणेहित्ति तेन वच्चामो, पच्छा कुलपुत्तगघरं नीओ समप्पिओ, तं च सव्वं पेज्जामोल्लं दिनं, मंतिपुत्तस्स उवगयं जहासोंडीरयाएत्ति, भणियं चऽणेण अत्थि मे विसेसो अओ गच्छामि, पच्छा गओ, कुमारेण रज्जं पत्तं, भोगावि से दिन्ना, एयस्स पारिणामिगी बुद्धी ॥ चाणक्को - गोल्लविस चणयग्गामो, तत्थ य चणगो माहणो, सोय सावओ, तस्स घरे साहू ठिया, पुत्तो से जाओ सह दाढाहिं, साहूण पाएसु पाडिओ, कहियं च-राया भविस्सइत्ति, मा दुग्ग जाइस्सत्ति दंता घट्टा, पुणोऽवि आयरियाणं कहियं, भणइ-किं कज्जउ ?, एत्ताहे बिंबंतरिओ भविस्सइ, उम्मुक्कबलभावेण चोद्दस विजाद्वाणाणि आगमियाणि, सो य सावओ संतुट्ठो, एगाओ भद्दमाहणकुलाओ भज्जा से आणिया । अन्नया कम्हिंवि कोउते माइघरं भज्जा से गया, केइ भांति - भाइविवाहे गया, तीसे य भगिनीओ अन्नेसिं खद्धादाणियाणं दिन्नेल्लियाओ, ताओ अलंकियविहुसियाओ आगयाओ, सव्वेऽवि परियणो ताहिं समं संलवएति, सा एगंते अच्छइ, अद्धिई जाया, घरं आगया, ससोगा, निब्बंधे सिद्धं तेन चिंतिय- नंदी पाडलिपुत्ते देइ तत्थ वच्चामि तओ कत्तियपुण्णिमाए पुव्वण्णत्थे आसणे पढमे णिसण्णो, तं च तस्स सल्लीपतियस्स सया ठविज, सिद्धपुत्तो य णंदेण समं तत्थ आगओ भणइ एस बंभणो नंदवंसस्स छायं अक्कमिऊण ठिओ, भणिओ दासीए भगवं ! बितीए आसणे निवेसाहि, अत्थु, बितिए आसणे कुंडियं ठवेइ, एवं ततिए दंडयं, चउत्थे गणित्तियं, पंचमे जण्णोवइयं धिट्ठोत्ति निच्छूढो, पाओ उक्खित्तो, अन्नया य भणइ 1 'कोशेन भृत्यैश्च निबद्धमूलं, पुत्रैश्च मित्रैश्च विवृद्धशाखम् । उत्पाट्य नन्दनं परिवर्तयामि महाद्रुमं वायुरवोग्रवेगः || १ || " निग्गओ मग्गइ पुरिसं, सुयं चऽनन विवंतरिओ राओ होहामित्ति, नंदस्स मोरपोसगा, तेसिं गामं गओ परिव्वायगलिगेणं, तेसिं च महत्तरधूयाए चंदपियणे दोहलो, सो समुदाणिंतो गओ, पुच्छंति, सो भणइ - जइ इमं मे दारगं देह तो णं पाएमिं चंदं, पडिसुर्णेति, पडमंडवे कए तद्दिवसं पुण्णिमा, मज्झे छिड्डुं कयं, मज्झगए चंदे सव्वरसालूहिं दव्वेहिं संजोएत्ता दुद्धस्स थालं भरियं, सद्दाविया पेच्छइ पिबइ य, उवरिं पुरिसो अच्छाडेइ, अवणीए जाओ पुत्तो, चंदगुत्तो से नामं कयं सोऽवि ताव संवढइ, चाणक्को य धाउबिलाणि मग्गाइ । सो य दारगेहिं समं रमइ रायणीईए, विभासा, चाणक्को पडिएइ, पेच्छइ, तेणवि मग्गिओ - अम्हवि दिजउ, भणइ - गावीओ एहिं, मा मारेज्जा कोई, भणइ - वीरभोजा पुहवी, नातं जहा विन्नापि से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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